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गुजरात में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट को झटका, वर्ल्ड बैंक की वित्तीय शाखा IFC ने लिया बड़ा फैसला!

by kishanchaubey
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Gujarat: वर्ल्ड बैंक की निजी ऋण देने वाली शाखा इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC) ने गुजरात में प्रस्तावित 40 मिलियन डॉलर (लगभग 330 करोड़ रुपये) के वेस्ट-टू-एनर्जी (WTE) प्लांट के लिए ऋण देने से इनकार कर दिया है। यह फैसला स्थानीय समुदायों, पर्यावरण संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद लिया गया, जिन्होंने इन परियोजनाओं से होने वाले प्रदूषण, जनस्वास्थ्य पर असर और आर्थिक नुकसान को लेकर चिंता जताई थी।

क्या था प्रस्तावित प्रोजेक्ट?

IFC की यह फंडिंग अबेलॉन क्लीन एनर्जी लिमिटेड (ACEL) को गुजरात के राजकोट, वडोदरा, अहमदाबाद और जामनगर में चार कचरा-से-ऊर्जा (WTE) संयंत्र स्थापित करने के लिए दी जानी थी। इन संयंत्रों में प्रतिदिन 3,750 टन अव्यवस्थित ठोस कचरे को जलाने की योजना थी। लेकिन पर्यावरणविदों का मानना था कि यह परियोजना वायु और जल प्रदूषण को बढ़ावा देगी, जलवायु परिवर्तन को तेज करेगी और सतत कचरा प्रबंधन की अवधारणा के खिलाफ जाएगी।

स्थानीय समुदायों और पर्यावरणविदों का विरोध

स्थानीय निवासियों और सामाजिक संगठनों ने IFC की Stakeholder Grievance Response Team को शिकायत दर्ज कराई और जून 2024 में वर्ल्ड बैंक के कार्यकारी निदेशकों को पत्र भेजा। इसके बाद 174 वैश्विक संगठनों ने इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए अभियान चलाया। IFC बोर्ड ने पहले जुलाई और फिर सितंबर 2024 में इस निर्णय को टाल दिया, लेकिन अंततः निवेश नहीं करने का फैसला लिया

पर्यावरण कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

WTE प्लांट के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं ने IFC के इस फैसले का स्वागत किया। जामनगर निवासी केर जयेंद्रसिंह ने इस फैसले को “महत्वपूर्ण जीत” बताया लेकिन साथ ही कहा कि पूरी परियोजना को बंद करना जरूरी है ताकि स्थानीय लोगों को राहत मिल सके।

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अहमदाबाद की कार्यकर्ता अस्मिता चावड़ा, जिन्हें WTE प्रोजेक्ट्स का विरोध करने पर कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा, ने कहा, “यह पिछले 10-12 वर्षों में हमारी पहली बड़ी सफलता है, लेकिन अबेलॉन अभी भी निर्माण कार्य जारी रखे हुए है। हम IFC की तरह अन्य वित्तीय संस्थानों से भी अनुरोध करते हैं कि वे इस तरह की हानिकारक परियोजनाओं को फंड देना बंद करें।”

आर्थिक संकट और वैकल्पिक समाधान

ACEL की वित्तीय स्थिति भी सवालों के घेरे में है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी को 2021 में 11.1 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था, लेकिन 2023 में यह 19 करोड़ रुपये के घाटे में पहुंच गई। वहीं, EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की आय) 3 करोड़ रुपये से घटकर -16 करोड़ रुपये हो गई। कंपनी को अपने ऋण भुगतान में भी भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

कार्यकर्ता अब पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) और भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) से भी अपील कर रहे हैं कि वे ACEL को दिए गए 195 करोड़ और 133 करोड़ रुपये के ऋण की समीक्षा करेंराजकोट के पर्यावरण कार्यकर्ता शैलेंद्रसिंह आर. जाडेजा ने कहा, “IFC ने यह स्वीकार किया है कि WTE प्लांट्स हानिकारक हैं, लेकिन अब जरूरी है कि PFC और IREDA भी इन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देना बंद करें।”

WTE प्लांट्स के बजाय सतत समाधान की मांग

पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि भारत को WTE संयंत्रों के बजाय कचरा प्रबंधन के अधिक टिकाऊ विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए। इनमें शामिल हैं:

  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध
  • कचरे का स्रोत पर ही अलगाव (Waste Segregation at Source)
  • विकेंद्रीकृत कचरा प्रसंस्करण संयंत्र (Decentralized Waste Processing Plants)
  • रीसाइक्लिंग और खाद निर्माण (Recycling & Composting)

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