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नर्मदा नदी का स्वास्थ्य: जल गुणवत्ता परीक्षण और भविष्य की चिंताएं

by kishanchaubey
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Narmada River: हमारी तरह ही यदि किसी नदी के स्वास्थ्य का पता लगा लिया जाए, तो उसके वर्तमान और भविष्य दोनों का आकलन किया जा सकता है। किसी नदी के स्वास्थ्य को समझने के दो मुख्य तरीके होते हैं: पहला, बाहरी गतिविधियों के आधार पर उसकी स्थिति देखना, और दूसरा, जल की गुणवत्ता का वैज्ञानिक विश्लेषण करना।

नदी की जल गुणवत्ता को जांचने के प्रमुख पैरामीटर

नदी के जल की गुणवत्ता को परखने के लिए वैज्ञानिकों ने कई मानकों को अपनाया है। हमने नर्मदा नदी के तीन अलग-अलग स्थानों से जल के नमूने एकत्र किए और उन्हें निम्नलिखित पांच मुख्य मानकों पर जांचा:

  1. pH स्तर – यह दर्शाता है कि पानी अम्लीय है या क्षारीय।
  2. DO (Dissolved Oxygen) यानी घुली हुई ऑक्सीजन – यह जल और उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
  3. BOD (Biochemical Oxygen Demand) यानी जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग – यह पानी में मौजूद खतरनाक तत्वों और प्रदूषण के स्तर को दर्शाता है।
  4. TDS (Total Dissolved Solids) यानी पानी में घुले ठोस कण – यह पानी की स्वच्छता और उसकी गुणवत्ता पर प्रभाव डालते हैं।
  5. Total Coliform यानी मल-मूत्र बैक्टीरिया की उपस्थिति – यह मानवजनित अपशिष्ट और सीवेज प्रदूषण की स्थिति को दर्शाता है।

तीन स्थानों से जल परीक्षण और उसके नतीजे

हमने नर्मदा नदी के पानी के नमूने चौरसाखेड़ी गांव (नसरुल्लागंज के पास), होशंगाबाद और शाहगंज से लिए। इन तीनों स्थानों पर जल परीक्षण के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए:

1. घुली हुई ऑक्सीजन (DO) का स्तर चिंताजनक

घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे अधिक होनी चाहिए, लेकिन नर्मदा के पानी में यह 4.12 और 4.05 मिलीग्राम प्रति लीटर ही पाई गई। यह दर्शाता है कि पानी स्थिर हो रहा है और उसमें प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। यह स्थिति जल-जीवों के लिए खतरा बन सकती है।

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2. जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD) उच्च स्तर पर

BOD की अधिकतम सुरक्षित सीमा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है, लेकिन नर्मदा के जल में यह 7.21 और 6.51 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। यह स्पष्ट करता है कि नदी में हानिकारक रसायन और प्रदूषक लगातार मिल रहे हैं, जो इसे जहरीला बना रहे हैं।

3. मल-मूत्र बैक्टीरिया की अधिकता

नदी के जल में Total Coliform बैक्टीरिया की अधिकतम सुरक्षित सीमा 500 MPN प्रति 100 मिलीलीटर होती है। लेकिन हमारे परीक्षणों में यह मात्रा 1800, 1200 और 900 MPN प्रति 100 मिलीलीटर पाई गई। यह दर्शाता है कि नदी में मल-मूत्र का प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे इसका पानी पीने और स्नान करने योग्य नहीं रहा।

नदी के संकट का कारण और प्रभाव

  1. बांधों का निर्माण:
    • नर्मदा नदी पर लगातार बनाए जा रहे बांधों ने इसके जल प्रवाह को बाधित कर दिया है।
    • पानी रुकने से उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है, जिससे जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है।
  2. रेत खनन (सैंड माफिया) का प्रभाव:
    • रेत नदी के लिए आवश्यक होती है क्योंकि यह जलीय जीव-जंतुओं के प्रजनन और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखती है।
    • अंधाधुंध रेत खनन के कारण नदी में जैव विविधता घट रही है।
  3. औद्योगिक और घरेलू कचरे की समस्या:
    • नदी में शहरों और गांवों से निकलने वाला सीवेज, औद्योगिक कचरा और घरेलू अपशिष्ट डाला जा रहा है।
    • इससे पानी में हानिकारक रसायनों की मात्रा बढ़ रही है, जो जल-जीवों के लिए घातक साबित हो रही है।

नर्मदा का भविष्य: संकट में एक पवित्र नदी

इन खतरनाक परिणामों के आधार पर यह स्पष्ट है कि यदि नर्मदा नदी का उचित संरक्षण नहीं किया गया, तो यह आने वाले 50 वर्षों में एक मौसमी नदी में बदल सकती है। बढ़ते बांधों, अवैध रेत खनन और अनियंत्रित प्रदूषण ने नदी के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है।

मध्य प्रदेश की स्टेट फिश महाशीर मछली, जो केवल स्वच्छ और बहते हुए पानी में जीवित रह सकती है, अब नर्मदा में शायद ही दिखाई देती है। इसका मतलब है कि नदी के पारिस्थितिक तंत्र में बड़ा असंतुलन आ चुका है।

समाधान: नर्मदा को बचाने के लिए आवश्यक कदम

  1. बांध निर्माण को सीमित करना: नदी के जल प्रवाह को बनाए रखना जरूरी है।
  2. अवैध रेत खनन पर सख्त प्रतिबंध: पारिस्थितिकी संतुलन के लिए रेत की सुरक्षा जरूरी है।
  3. सीवेज और औद्योगिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था: बिना ट्रीटमेंट किए जल में कचरा डालने पर रोक लगानी होगी।
  4. पुनर्स्थापन और वृक्षारोपण: नदी किनारे वृक्षारोपण और जल संरक्षण के उपाय अपनाने होंगे।
  5. सार्वजनिक जागरूकता: स्थानीय समुदायों को नदी की रक्षा के लिए शिक्षित और प्रेरित करना होगा।

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