Narmada River :नर्मदा, जिसे मध्य प्रदेश की जीवनरेखा कहा जाता है, आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की 2019 की रिपोर्ट ने यह चौंकाने वाला तथ्य सामने रखा कि नर्मदा दुनिया की 6 विलुप्त होती नदियों में शामिल है। यह स्थिति केवल प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं है, बल्कि इंसानी लालच और प्रशासन की उदासीनता का क्रूर परिणाम है।
रेत माफिया के काले खेल का सच
पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र में नर्मदा के सीने पर खुलेआम रेत खनन का खेल खेला जा रहा है। नदी के बीचों-बीच नावें ले जाई जाती हैं। गोताखोर नदी में डूबकी लगाकर बाल्टियों से रेत निकालते हैं। यह रेत नावों में भरी जाती है और किनारों तक लाई जाती है। वहां से ट्रैक्टर ट्रॉलियों में लादकर सड़क किनारे डंपरों में भरा जाता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बीच रास्ते में ही इन रेत की रॉयल्टी काट दी जाती है और इसे वैध बना दिया जाता है। इस प्रक्रिया में न केवल नर्मदा का सीना छलनी किया जा रहा है, बल्कि प्रशासन की आंखों के सामने यह अपराध धड़ल्ले से जारी है।
150 से अधिक अवैध रास्तों का निर्माण
रेत माफिया ने नर्मदा के अंदर ही 150 से अधिक रास्ते बना लिए हैं ताकि रेत परिवहन में सुविधा हो सके। ये रास्ते न केवल नदी के प्रवाह को बाधित करते हैं, बल्कि इसके प्राकृतिक संतुलन को भी गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं।
प्रशासन की खामोशी: सवालों के घेरे में
जब यह सारा खेल प्रशासन की आंखों के सामने चल रहा है, तो सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार कौन है? क्या सरकार और प्रशासन केवल जयंती पर नर्मदा की महिमा गाने के लिए हैं? क्या उनकी जिम्मेदारी केवल औपचारिक पूजा-अर्चना तक सीमित है?
नदी के लिए रेत क्यों जरूरी है?
रेत सिर्फ निर्माण कार्यों के लिए नहीं होती, बल्कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नदी की धारा को संतुलित रखने, जलभराव को रोकने और जलजीवों के लिए अनुकूल आवास प्रदान करने में मदद करती है। लेकिन जब यह रेत बेतहाशा निकाली जाती है, तो नर्मदा का अस्तित्व ही खतरे में आ जाता है।
क्या नर्मदा जयंती सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगी?
4 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाई जाएगी। एक दिन के लिए मां नर्मदा की पूजा होगी, भव्य कार्यक्रम आयोजित होंगे, और फिर अगले दिन वही रेत खनन माफिया नर्मदा के सीने को छलनी करने में जुट जाएंगे। क्या यही हमारी श्रद्धा है? क्या हम सिर्फ जयंती के लिए नर्मदा को याद करेंगे और उसके बाद उसकी हत्या में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे?
आवश्यकता है जन जागरण की
यदि हम नर्मदा को बचाना चाहते हैं, तो हमें इस खेल के खिलाफ आवाज उठानी होगी। प्रशासन की खामोशी को चुनौती देनी होगी और माफिया के इस आतंक को खत्म करना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब नर्मदा केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी।हे हैं।”