Blueberry Crop: ब्लूबेरी, जिसे नीलबदरी या फीरा भी कहा जाता है, की फसल पाउडरी फफूंद नामक एक गंभीर रोग की चपेट में है। यह रोग न केवल फसल की पैदावार को कम कर रहा है, बल्कि किसानों की कवकनाशकों पर निर्भरता भी बढ़ा रहा है। यह समस्या धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल रही है और कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
पाउडरी फफूंद क्या है और यह कैसे नुकसान पहुंचाता है?
पाउडरी फफूंद एक ऐसा रोग है जो पौधों की पत्तियों और तनों पर सफेद पाउडर जैसे फफूंद जमा कर देता है। यह कवक पौधे के पोषक तत्वों को सोख लेता है और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बाधित करता है। हालांकि पौधा जीवित रहता है, लेकिन उसकी पैदावार और गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है।
यह रोग केवल ब्लूबेरी तक सीमित नहीं है; गेहूं, अंगूर, स्ट्रॉबेरी और हॉप्स जैसी कई फसलों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है।
पाउडरी फफूंद का प्रसार: 12 सालों में वैश्विक समस्या
नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार, यह बीमारी पिछले 12 सालों में अमेरिका के पूर्वी हिस्सों से निकलकर कई महाद्वीपों में फैल चुकी है।
- यह रोग पहली बार 2012 में उत्तरी अमेरिका के बाहर पुर्तगाल में देखा गया था।
- दो अलग-अलग स्ट्रेन (प्रकार) में यह कवक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैल चुका है। एक प्रकार चीन, मैक्सिको और कैलिफोर्निया में पाया गया, जबकि दूसरा मोरक्को, पेरू और पुर्तगाल में फैला।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि इसका प्रसार मुख्यतः नर्सरी के पौधों के व्यापार के जरिए हो रहा है। जब पौधे एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाते हैं, तो यह कवक भी उनके साथ फैलता है।
अमेरिका और अन्य देशों में रोग की अलग प्रवृत्तियां
शोध में बताया गया है कि अमेरिका में यह कवक यौन और अलैंगिक दोनों तरीकों से प्रजनन करता है। वहीं, अन्य देशों में यह केवल अलैंगिक रूप से प्रजनन करता है। यह स्थिति इसे तेजी से फैलने में मदद करती है।
पाउडरी फफूंद का आर्थिक प्रभाव
ब्लूबेरी की फसलों को इस रोग से बचाने के लिए कवकनाशकों का उपयोग एक बड़ी लागत बन गया है।
- अध्ययन के अनुसार, हर साल दुनिया भर में ब्लूबेरी उद्योग पर 47 मिलियन डॉलर से 530 मिलियन डॉलर तक का खर्च हो रहा है।
- यह खर्च न केवल फफूंदनाशकों के छिड़काव पर होता है, बल्कि फसल की पैदावार में कमी से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
प्रमुख ब्लूबेरी उत्पादक क्षेत्रों के लिए चेतावनी
शोध में अमेरिका के प्रशांत उत्तर-पश्चिम क्षेत्र जैसे प्रमुख ब्लूबेरी उत्पादक इलाकों को लेकर आगाह किया गया है। वहां की जलवायु इस बीमारी के पनपने के लिए अनुकूल है, हालांकि अभी तक यह रोग वहां नहीं पहुंचा है।
पाउडरी फफूंद का प्रबंधन कैसे किया जा सकता है?
शोधकर्ताओं ने फफूंद के स्ट्रेन की पहचान करने और उसके प्रसार को नियंत्रित करने के लिए नए उपकरण और तकनीकें विकसित की हैं।
- एक सार्वजनिक डेटाबेस तैयार किया गया है, जहां किसान अपने खेतों में मौजूद फफूंद के प्रकार का रिकॉर्ड रख सकते हैं।
- यह जानकारी उन्हें यह समझने में मदद करेगी कि कौन सा स्ट्रेन उनकी फसल को प्रभावित कर रहा है, यह कवकनाशकों के प्रति प्रतिरोधी है या नहीं, और यह रोग कैसे फैल रहा है।
कृषि स्थितियों का प्रभाव
पाउडरी फफूंद का असर खेती की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है।
- सुरंगों या बंद क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों पर इस रोग का प्रभाव अधिक होता है।
- वहीं, खुले इलाकों में उगाई जाने वाली फसलों पर इसका असर अपेक्षाकृत कम देखा गया है।
शोध के निष्कर्ष और भविष्य की दिशा
न्यू फाइटोलॉजिस्ट नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में यह स्पष्ट किया गया है कि पाउडरी फफूंद रोग का नियंत्रण मुश्किल है। लेकिन आनुवंशिक अध्ययन और आधुनिक उपकरणों की मदद से इसके प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
- आनुवंशिकी की गहरी समझ से किसानों को यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि कौन से कवक उनके खेतों में मौजूद हैं और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
- साथ ही, अंतरराष्ट्रीय पौधों के व्यापार पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है, ताकि इस रोग के प्रसार को रोका जा सके।