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केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना: विकास या विनाश?

by kishanchaubey
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Ken-Betwa River Link Project : साल 2005 में पहली बार केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना की परिकल्पना की गई थी, लेकिन विभिन्न विरोधों के चलते यह योजना लंबे समय तक ठंडे बस्ते में रही। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती के अवसर पर 25 दिसंबर को इस परियोजना का शिलान्यास किया।

क्या है केन-बेतवा परियोजना?

यह परियोजना भारत की पहली राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत नदी जोड़ने की योजना है। इसका उद्देश्य है:

  1. सिंचाई: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाना।
  2. पेयजल आपूर्ति: ग्रामीण इलाकों में साफ पानी की उपलब्धता।
  3. ऊर्जा उत्पादन: 100 मेगावाट से अधिक हरित ऊर्जा का उत्पादन।
  4. रोजगार: हजारों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
  5. ग्रामीण विकास: क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना।

पर्यावरणीय चिंताएं

इस परियोजना को लेकर पर्यावरणविदों और वन्यजीव प्रेमियों ने गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि इस परियोजना से क्षेत्र की पारिस्थितिकी और वन्यजीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

पन्ना टाइगर रिजर्व पर प्रभाव

  1. बाघों का आवास संकट: करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पन्ना टाइगर रिजर्व के करीब 58.03 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जलमग्न होने का खतरा है। अप्रत्यक्ष रूप से 105.23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।
  2. वन्यजीव प्रजातियों पर खतरा: सांभर, चीतल, ब्लू बुल, चिंकारा और चौसिंघा जैसी प्रजातियां, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और सीआईटीईएस (CITES) के तहत संरक्षित हैं, इस परियोजना से प्रभावित हो सकती हैं।
  3. सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार समिति ने 2019 में कहा था कि इस परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व की अनूठी पारिस्थितिकी को स्थायी क्षति हो सकती है। उन्होंने इसके दीर्घकालिक प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करने की सिफारिश की थी।

वृक्षों की कटाई और पर्यावरणीय प्रभाव

परियोजना के तहत 20-25 लाख पुराने पेड़ों की कटाई की योजना है। यह कदम विंध्य पहाड़ी क्षेत्र की पारिस्थितिकी और जलवायु पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

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बुंदेलखंड में पानी की समस्या

सरकार का दावा है कि इस परियोजना से बुंदेलखंड में पानी की कमी दूर होगी। हालांकि, करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र में सुझाव दिया गया है कि इस समस्या का समाधान जखनी गांव के मॉडल को अपनाकर किया जा सकता है।

जखनी गांव मॉडल:

  1. खेतों में तालाबों का निर्माण।
  2. पुराने जलाशयों का पुनरुद्धार।
  3. वर्षा जल का संग्रहण।
  4. खेतों में पानी रोकने के लिए मेड़ों का निर्माण।
  5. वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र का विस्तार।

नीति आयोग ने 2019 में जखनी गांव को “जलग्राम” घोषित किया था। यह टिकाऊ और पर्यावरणीय दृष्टि से बेहतर मॉडल साबित हो सकता है।

केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, लेकिन इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की अनदेखी नहीं की जा सकती। सरकार को चाहिए कि:

  1. पन्ना टाइगर रिजर्व और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करवाए।
  2. पुराने पेड़ों को बचाने के लिए वैकल्पिक समाधान तलाशे।
  3. स्थानीय समुदायों की चिंताओं को समझे और उन्हें परियोजना में भागीदार बनाए।
  4. जखनी जैसे टिकाऊ और पर्यावरण-संवेदनशील मॉडल को प्राथमिकता दे।

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