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Banana farming: केला एक लोकप्रिय और पोषक तत्वों से भरपूर फल है, जिसे दुनियाभर में पसंद किया जाता है। भारत में, केले की खेती सबसे बड़े पैमाने पर की जाती है और यह किसानों के लिए एक लाभदायक फसल है। केले की खेती के लिए सही तकनीक और देखभाल जरूरी होती है। यहां केले की खेती की पूरी जानकारी दी गई है:
1. केले की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
जलवायु:
- केला एक उष्णकटिबंधीय फसल है और इसे गर्म और नमी वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
- 20-35°C तापमान केले की खेती के लिए आदर्श होता है।
- ठंड, पाला और अत्यधिक गर्मी केले की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मिट्टी:
- केले की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
- मिट्टी का pH स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
- यदि मिट्टी भारी या रेतीली हो, तो उसमें जैविक खाद मिलाकर उर्वरता बढ़ाई जा सकती है।
2. केले की किस्में
भारत में कई प्रकार की केले की किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- ड्वार्फ कैवेंडिश: सबसे लोकप्रिय किस्म, जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- रोबस्टा: वाणिज्यिक खेती के लिए उपयुक्त।
- रसथाली: मिठास और स्वाद के लिए प्रसिद्ध।
- नेंड्रन: केरला में उगाई जाने वाली विशेष किस्म।
- ग्रामथन: पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली किस्म।
3. खेत की तैयारी
- जमीन की सफाई:
- पहले खेत से सभी खरपतवार और पुराने पौधे हटा लें।
- जुताई:
- खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी नरम और हवादार हो जाए।
- गड्ढे तैयार करना:
- पौधों के लिए 45x45x45 सेमी आकार के गड्ढे तैयार करें।
- गड्ढों के बीच 6×6 फीट की दूरी रखें।
- खाद डालना:
- गड्ढों में गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) मिलाएं।
4. केले की रोपाई
पौधों का चयन:
- रोपाई के लिए स्वस्थ और रोगमुक्त पौधों का चयन करें।
- ऊतक संवर्धन (टिश्यू कल्चर) के पौधे सबसे बेहतर होते हैं क्योंकि ये जल्दी बढ़ते हैं और रोग प्रतिरोधक होते हैं।
रोपाई का समय:
- मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) केले की रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय है।
- सिंचाई की सुविधा होने पर फरवरी-मार्च में भी रोपाई की जा सकती है।
रोपाई प्रक्रिया:
- गड्ढों में पौधे लगाएं और जड़ के आसपास मिट्टी दबा दें।
- तुरंत हल्की सिंचाई करें।
5. सिंचाई और जल प्रबंधन
- केले की फसल को अधिक पानी की जरूरत होती है।
- रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें और फिर हर 7-10 दिन पर पानी दें।
- गर्मियों में पानी की मात्रा बढ़ा दें।
- ड्रिप सिंचाई प्रणाली सबसे उपयुक्त होती है क्योंकि यह पानी की बचत करती है।
6. उर्वरक और पोषण प्रबंधन
- जैविक खाद: रोपाई के समय गड्ढों में गोबर की खाद डालें।
- रासायनिक उर्वरक:
- रोपाई के 2 महीने बाद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का अनुप्रयोग करें।
- हर 2-3 महीने में उर्वरक डालते रहें।
- फोलियर स्प्रे: माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (जिंक, बोरॉन) के स्प्रे से पौधों की गुणवत्ता बढ़ती है।
7. रोग और कीट प्रबंधन
रोग:
- पैनामा विल्ट: पौधों की जड़ों को प्रभावित करता है।
- समाधान: रोगरोधी किस्में उगाएं और संक्रमित पौधों को हटा दें।
- सिगाटोका रोग: पत्तियों पर धब्बे बनाता है।
- समाधान: फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें।
कीट:
- निमेटोड्स: जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।
- समाधान: जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
- बोरर कीड़े: तने को खोखला कर देते हैं।
- समाधान: कीटनाशक का सही मात्रा में उपयोग करें।
8. फसल कटाई
- केले की फसल रोपाई के 12-15 महीने बाद तैयार हो जाती है।
- जब केले का रंग हल्का हरा हो और फल पूरी तरह से आकार में आ जाएं, तो कटाई करें।
- कटाई के बाद केले को छाया में रखें ताकि फलों की गुणवत्ता बनी रहे।
9. उपज और लाभ
- केले की खेती से प्रति एकड़ 20-25 टन उपज प्राप्त की जा सकती है।
- बाजार में कीमत के आधार पर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- प्रसंस्करण (चिप्स, पाउडर) और निर्यात से अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।
10. केले की खेती में चुनौतियां और समाधान
- मिट्टी की उर्वरता घट जाना:
- हर साल जैविक खाद का उपयोग करें।
- बाजार में मूल्य की अस्थिरता:
- सीधे बाजारों और प्रोसेसिंग यूनिट्स से संपर्क करें।
- पानी की कमी:
- ड्रिप सिंचाई अपनाएं।