Historic decision of Supreme Court: 18 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के पवित्र उपवनों (सैकरेड ग्रोव्स) की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया। यह फैसला भारत की पारंपरिक पारिस्थितिक धरोहर की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। लेकिन आखिर ये पवित्र उपवन हैं क्या, और इनका महत्व क्यों है?
क्या हैं पवित्र उपवन?
मानव सभ्यता में प्रकृति की पूजा एक प्राचीन परंपरा रही है। दुनिया की लगभग हर संस्कृति में पेड़ों को दिव्यता का प्रतीक माना गया है।
- उदाहरण:
- नॉर्स संस्कृति में यग्द्रसिल।
- इस्लाम में सिदरत अल-मुनताहा।
- बौद्ध धर्म में बोधि वृक्ष, जिसके नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ।
पवित्र उपवन वे जंगल हैं जिन्हें स्थानीय समुदायों ने अपने देवी-देवताओं या पूर्वजों की आत्माओं को समर्पित कर संरक्षित किया है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि इन वनों को पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है।
पवित्र उपवनों की विशेषताएं
2001 में कैलाश सी. मल्होत्रा, योगेश गोखले, सुदीप्तो चटर्जी और संजीव श्रीवास्तव द्वारा लिखे गए एक शोध पत्र के अनुसार:
- प्राकृतिक स्थिति: पवित्र उपवनों में वनस्पतियां और जैव विविधता लगभग प्राकृतिक अवस्था में संरक्षित रहती हैं।
- सामाजिक मान्यताएं: इन वनों की सुरक्षा स्थानीय समुदायों द्वारा धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के जरिए सुनिश्चित की जाती है।
- पारिस्थितिक तंत्र की भूमिका:
- संकटग्रस्त, दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजातियों को सुरक्षित शरण मिलती है।
- ये वन स्थानीय जलवायु को संतुलित करने में मदद करते हैं।
- धार्मिक महत्व: लोग मानते हैं कि इन वनों को संरक्षित रखना मानव और प्रकृति के बीच के पवित्र संबंध को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
भारत में पवित्र उपवनों की परंपरा
भारत में पवित्र उपवनों की प्राचीन परंपरा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, देश में 50,000 से अधिक पवित्र उपवनों की जानकारी उपलब्ध है।
- विभिन्न धार्मिक परंपराएं:
- वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम और सिख धर्म में पेड़ों और पौधों को पवित्र माना गया है।
- ऐतिहासिक प्रमाण:
- भीमबेटका की गुफाओं के शैलचित्र।
- हड़प्पा सभ्यता में पीपल और शमी वृक्ष को पवित्र मानना।
देशभर में पवित्र उपवनों के उदाहरण
- उत्तर भारत:
- हिमाचल प्रदेश के देव वन।
- उत्तराखंड के बुग्याल।
- पश्चिम भारत:
- राजस्थान के थार क्षेत्र में ओरन।
- पूर्वोत्तर भारत:
- मेघालय का मावफलांग।
- दक्षिण भारत:
- केरल का सर्पकावु।
- तमिलनाडु का कोविल कावु।
- मध्य भारत:
- छत्तीसगढ़ और झारखंड में सारना परंपरा।
पवित्र उपवनों की चुनौतियां
हालांकि पवित्र उपवन भारत की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं, लेकिन समय के साथ यह प्रथा कमजोर होती जा रही है।
- आधुनिकीकरण: शहरीकरण और विकास कार्यों के कारण पवित्र उपवन सिकुड़ते जा रहे हैं।
- संवेदनहीनता: पारंपरिक मान्यताओं का क्षरण हो रहा है, जिससे इन वनों का संरक्षण प्रभावित हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इसका महत्व
18 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पवित्र उपवनों की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम है। कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे इन उपवनों को संरक्षित करने के लिए विशेष नीतियां बनाएं और उन्हें प्रभावी रूप से लागू करें।