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पवित्र उपवन: जैव विविधता और संस्कृति के संरक्षक, लेकिन संकट में

by kishanchaubey
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भारत में पवित्र उपवन न केवल जैव विविधता को आश्रय देते हैं, बल्कि कार्बन सिंक के रूप में जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी मदद करते हैं। ये उपवन आदिवासी समुदायों के लिए पूजनीय स्थल हैं और उनकी संस्कृति व परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं। लेकिन वनों की कटाई, खनन, और विकासात्मक गतिविधियों के कारण ये उपवन खतरे में हैं।

पवित्र उपवन और उनकी महत्ता

देशभर में पवित्र उपवनों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। झारखंड में इन्हें “सरना”, छत्तीसगढ़ में “देवगुड़ी”, और राजस्थान में “ओरण” कहा जाता है। इनका क्षेत्रफल छोटे पेड़ों से लेकर कई एकड़ में फैला हो सकता है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक, लगभग 3,000, पवित्र उपवन हैं। ये उपवन स्थानीय समुदायों के लिए पूजा स्थलों के रूप में कार्य करते हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक हैं।

संरक्षण के सामने चुनौतियां

झारखंड के हजारीबाग जिले की एक आदिवासी महिला ने चिंता व्यक्त की थी कि पुनर्वास योजनाओं के कारण पवित्र उपवन गायब हो सकते हैं। यह समस्या अकेले झारखंड की नहीं है। देशभर में वनों की कटाई और खनन के कारण कई उपवन समाप्त हो रहे हैं।

भारत में पवित्र उपवनों का कुल क्षेत्रफल लगभग 33,000 हेक्टेयर है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का केवल 0.01% है।

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वन अधिकार और स्थानीय समुदायों का प्रयास

छत्तीसगढ़ के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के उप-निदेशक वरुण जैन ने बताया कि आदिवासी समुदाय वनस्पतियों और जीवों की पूजा करते हैं। वन विभाग ने पर्यावरण जागरूकता फैलाने के लिए गांवों में दीवार पेंटिंग कराई है। इसके अलावा, 190 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत, समुदायों को समझाया जा रहा है कि जंगल के कुछ हिस्सों को पवित्र माना जाए और उनका उपयोग चराई या जलाऊ लकड़ी के लिए न किया जाए। इससे वन्यजीवों को सुरक्षित आश्रय मिलेगा।

संरक्षण के सफल उदाहरण

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के चिंचवाड़ी गांव में “टाटा ची वनराई” नामक आठ एकड़ का उपवन संरक्षित किया गया है। स्थानीय ठाकर जनजाति ने लकड़ी माफिया का विरोध कर इस उपवन को बचाया। यहां तेंदुए की वापसी संरक्षण की सफलता को दर्शाती है।

मुंबई के आरे जंगल और संजय गांधी नेशनल पार्क में वाघोबा (बाघ देवता) की पूजा सदियों से होती आई है। यह परंपरा बाघ और इंसान के सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती है।

सरकार और स्थानीय प्रयासों की जरूरत

झारखंड सरकार ने 2019 में पवित्र उपवनों की रक्षा के लिए चारदीवारी बनाने की योजना शुरू की। हालांकि, कई योजनाएं समुदायों को शामिल किए बिना ही बनाई जाती हैं, जिससे उपवनों का संरक्षण मुश्किल हो जाता है।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान के प्रोफेसर अभय मिंज के अनुसार, पवित्र उपवन ऐसे स्थान हैं, जहां पेड़ों की कटाई निषिद्ध होती है। इसलिए वे जैव विविधता और ऑक्सीजन का भंडार हैं।

जलवायु परिवर्तन और पवित्र उपवनों की भूमिका

2070 तक भारत को जलवायु शून्य (नेट जीरो) लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वनों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। पवित्र उपवन जैव विविधता को सुरक्षित रखने और कार्बन सिंक के रूप में जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष

पवित्र उपवन न केवल जैव विविधता बल्कि भारतीय संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनकी रक्षा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। वन विभाग, समुदायों और सरकार के संयुक्त प्रयास से इन उपवनों को बचाया जा सकता है। संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करना न केवल आदिवासी संस्कृति को बचाएगा बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा।

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