भारत ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में एक ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान विकसित देशों को जलवायु संकट का मुख्य कारण बताते हुए उनकी तीखी आलोचना की। भारत ने कहा कि विकसित देशों ने वैश्विक कार्बन बजट का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया, अपने वादे के अनुसार जलवायु वित्त (climate finance) नहीं दिया, और अब वे विकासशील देशों से संसाधनों के उपयोग को सीमित करने की मांग कर रहे हैं।
न्यायालय में चर्चा का विषय
इस सुनवाई का उद्देश्य यह तय करना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों की कानूनी जिम्मेदारियां क्या हैं और अगर वे इन जिम्मेदारियों को पूरा करने में असफल रहते हैं, तो इसके क्या परिणाम होंगे।
भारत का बयान
लूथर एम रंगरेजी, विदेश मंत्रालय (MEA) के संयुक्त सचिव, ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा:
“अगर प्रदूषण में योगदान असमान है, तो जिम्मेदारी भी असमान होनी चाहिए।”
भारत ने कहा कि विकासशील देश, जो जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान करते हैं, इसके सबसे बड़े शिकार बनते हैं।
रंगरेजी ने विकसित देशों की आलोचना करते हुए कहा:
- फायदा उठाया, अब रोक लगा रहे हैं:
“वे देश जिन्होंने जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) का लाभ उठाकर अपना विकास किया, अब विकासशील देशों को उनके ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं।” - वित्तीय वादे पूरे नहीं किए:
भारत ने कहा कि विकसित देशों ने 2009 में कोपेनहेगन सम्मेलन (COP15) में 100 अरब डॉलर जलवायु वित्त के लिए देने का वादा किया था, लेकिन अभी तक इसे अमल में नहीं लाया गया है। - नया फंड भी अपर्याप्त:
COP29 में अज़रबैजान के बाकू में ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के लिए जो नया जलवायु वित्त पैकेज घोषित हुआ है, उसे भारत ने “बहुत कम और बहुत दूर” बताया।
भारत का दृष्टिकोण
भारत ने यह भी कहा कि:
- न्याय और समानता जरूरी:
“अगर वैश्विक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में योगदान असमान है, तो जिम्मेदारी भी असमान होनी चाहिए।” - अपने नागरिकों पर बोझ नहीं डालेगा:
“भारत पेरिस समझौते के तहत अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अपने नागरिकों पर अधिक बोझ डालने की सीमा है, खासकर जब भारत दुनिया की छठी आबादी के लिए सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को पूरा कर रहा है।”
क्यों हो रही है यह सुनवाई?
यह सुनवाई प्रशांत महासागर के छोटे द्वीप देशों और वानुआतु जैसे देशों की कई वर्षों की मेहनत का परिणाम है। इन देशों ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पारित करवा कर ICJ से एक परामर्शात्मक राय (advisory opinion) की मांग की थी।
संभावित प्रभाव
हालांकि यह राय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होगी, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक नैतिक और कानूनी मानक स्थापित कर सकती है। आने वाले दो हफ्तों में 98 देश, जिनमें छोटे द्वीप देश और बड़े प्रदूषक (emitter) शामिल हैं, अपनी राय प्रस्तुत करेंगे।
पर्यावरण और भारत की भूमिका
भारत ने जलवायु न्याय (climate justice) का आह्वान करते हुए यह साफ कर दिया कि जलवायु संकट का समाधान तभी संभव है जब विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार करें और विकासशील देशों की जरूरतों और संसाधनों का सम्मान करें।