मई 2024 में असम के धेमाजी जिले में वन विभाग और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए ऊदबिलाव की चार खालें जब्त कीं। यह घटना इस बात को उजागर करती है कि पूर्वोत्तर भारत में ऊदबिलाव के फर और शरीर के अन्य अंगों का अवैध व्यापार एक गंभीर समस्या बन चुका है।
भारत में ऊदबिलाव की स्थिति
दुनिया में ऊदबिलाव की 13 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से तीन प्रजातियां भारत में मिलती हैं:
- यूरेशियन ऑटर
- स्मूद-कोटेड ऑटर (चिकनी खाल वाले)
- स्मॉल-क्लॉड ऑटर (छोटे पंजों वाले)
ये मांसाहारी स्तनधारी नदियों और झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा हैं। लेकिन संरक्षण क्षेत्रों के बाहर इनका अवैध शिकार और तस्करी तेजी से बढ़ रही है।
धेमाजी में जब्ती का मामला
23 मई 2024 को, WCCB और धेमाजी वन विभाग ने एक व्यक्ति को पकड़कर उसके पास से ऊदबिलाव की चार खालें बरामद कीं।
धेमाजी के वन अधिकारी दिबाकर महंत ने बताया,
“हमने अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सियांग जिले से सूचना मिलने के बाद जोनई इलाके में इस कार्रवाई को अंजाम दिया। पकड़ा गया व्यक्ति केवल खालों को गोगामुख पहुंचाने वाला वाहक था। उसे आगे की डिलीवरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।”
WCCB के अधिकारियों ने बताया कि जब्त की गई खालें करीब एक साल पुरानी हैं। ये खालें ताजा शिकार की नहीं थीं और इनकी जांच के लिए फॉरेंसिक परीक्षण की जरूरत है।
अवैध शिकार और व्यापार के तरीके
अधिकारियों के मुताबिक, तस्कर ऊदबिलाव को भालों या जाल का उपयोग करके मारते हैं। बंदूक का इस्तेमाल कम किया जाता है क्योंकि इससे खाल खराब हो जाती है और उसकी बाजार में कीमत घट जाती है।
ऊदबिलाव की खालों की मांग फैशन उद्योग में बहुत ज्यादा है। इसके बालों का इस्तेमाल पेंट ब्रश बनाने में भी किया जाता है।
पर्यावरणविद अनवरुद्दीन चौधरी ने बताया कि तिब्बत में ऊदबिलाव की खाल का इस्तेमाल पारंपरिक पोशाक ‘चुबा’ और हेड गियर बनाने में किया जाता है। हालांकि, दलाई लामा की अपील के बाद तिब्बत में खालों का इस्तेमाल कम हुआ है, लेकिन हालिया घटनाएं बताती हैं कि यह व्यापार अब भी जारी है।
ऊदबिलाव संरक्षण की कमी
IUCN रेड लिस्ट में भारतीय ऊदबिलाव प्रजातियों को ‘संवेदनशील’ और ‘निकट संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (KNP) और मानस राष्ट्रीय उद्यान (MNP) जैसे संरक्षित क्षेत्रों में ऊदबिलाव की अच्छी आबादी है।
KNP के पूर्व वन अधिकारी रमेश गोगोई ने बताया,
“काजीरंगा में ऊदबिलावों को अच्छे संरक्षण के कारण झीलों और नदियों में अक्सर देखा जा सकता है।”
हालांकि, संरक्षित क्षेत्रों के बाहर इनकी हालत खराब है। चौधरी के अनुसार,
“90 के दशक में, मानस राष्ट्रीय उद्यान में ऊदबिलावों की संख्या बेहद कम हो गई थी। लेकिन अब इनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है।”
अवैध व्यापार की अंतरराष्ट्रीय मांग
WCCB के अधिकारियों का मानना है कि ऊदबिलाव की खालों की तस्करी में तिब्बत और अन्य पड़ोसी देशों की मांग बड़ी भूमिका निभाती है।
खाल को सुखाकर, मोड़कर और आसानी से छिपाया जा सकता है, जिससे पकड़े जाने की संभावना कम हो जाती है।
संरक्षण के लिए जरूरी कदम
- ऊदबिलावों के संरक्षण के लिए संवेदनशील प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- वन्यजीव प्रबंधन को केवल बड़े जानवरों तक सीमित रखने के बजाय छोटी प्रजातियों के संरक्षण पर भी काम करना होगा।
- तस्करी और अवैध शिकार रोकने के लिए कड़ी निगरानी और कानूनी कार्रवाई की जरूरत है।
- समुदायों को जागरूक करने और पारंपरिक रूप से खालों के इस्तेमाल को रोकने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।