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“चावल: जलवायु परिवर्तन का शिकार या समाधान? वियतनाम की लोक ट्रोई ग्रुप का टिकाऊ खेती की ओर बड़ा कदम”

by kishanchaubey
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चावल, जो दुनिया की लगभग आधी आबादी का मुख्य भोजन है, जलवायु परिवर्तन के लिए एक बड़ी चुनौती भी है। पारंपरिक तरीके से उगाए जाने वाले चावल के कारण जलवायु को भारी नुकसान होता है। इसकी खेती में धान के खेतों को पानी में डुबोने से मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे मीथेन गैस उत्सर्जित होती है। चावल की खेती से होने वाले मीथेन उत्सर्जन का योगदान वैश्विक वार्षिक उत्सर्जन का 12% है। यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में कई गुना अधिक हानिकारक है।

इसके अलावा, चावल की बढ़ती मांग के चलते जंगलों को काटा जा रहा है ताकि अधिक भूमि खेती के लिए उपयोग में लाई जा सके। यह समस्या जलवायु परिवर्तन को और बढ़ा देती है। चावल की खेती जल संसाधनों पर भी दबाव डालती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी पहले से ही एक बड़ी समस्या है। उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जित होती है, जो CO2 से 300 गुना अधिक खतरनाक है। लगातार पारंपरिक तरीके से चावल की खेती करने से मिट्टी की उर्वरता घट जाती है।

लेकिन समस्या यह है कि चावल, जो करोड़ों लोगों के लिए जीवन का आधार है, अब जलवायु परिवर्तन के कारण ही संकट में आ गया है। चावल की खेती पर मौसम में आ रहे बदलावों का गहरा असर पड़ रहा है। अब सवाल यह है कि इसे टिकाऊ (सस्टेनेबल) तरीके से कैसे उगाया जाए ताकि अरबों लोगों की खाद्य सुरक्षा बनी रहे।

वियतनाम की लोक ट्रोई ग्रुप की कहानी

स्थिरता की ओर कदम
वियतनाम के सबसे बड़े चावल उत्पादक, लोक ट्रोई ग्रुप (Loc Troi), ने 2023 में स्थायी चावल उत्पादन की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया। कंपनी ने 1,000 किसानों के साथ टिकाऊ चावल (सस्टेनेबल राइस) की खेती के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया। अब कंपनी इसे बड़े पैमाने पर लागू करने की योजना बना रही है।

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लोक ट्रोई की शुरुआत 1993 में चावल उद्योग के लिए कृषि रसायन आपूर्तिकर्ता के रूप में हुई थी। धीरे-धीरे, कंपनी ने उर्वरक, बीज और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में कदम रखा। 2006 में, कंपनी ने चावल की खेती शुरू की और “फार्मर्स फ्रेंड” मॉडल अपनाया।

फार्मर्स फ्रेंड मॉडल: किसानों का साथी

इस मॉडल में कंपनी किसानों के साथ अनुबंध करती है और उनकी उपज खरीदने, प्रसंस्करण और बाजार में बेचने की जिम्मेदारी लेती है। कंपनी ने किसानों की मदद के लिए कृषि इंजीनियर नियुक्त किए, जो बेहतर उपज प्राप्त करने के तरीके सिखाते थे।

2016 में, लोक ट्रोई ने टिकाऊ चावल की खेती शुरू की। 2018 में, कंपनी ने इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन के सहयोग से एक बड़ा पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। इस प्रोजेक्ट में 46 चरणों में पर्यावरण-अनुकूल खेती की तकनीकें अपनाई गईं।

टिकाऊ खेती के फायदे

पायलट प्रोजेक्ट में किसानों को प्रशिक्षण, फसल कटाई के लिए स्वचालित मशीनें, और फसल की बीमारियों का प्रबंधन करने के उपकरण दिए गए। इसके परिणामस्वरूप:

  • कीटनाशकों का उपयोग 12% कम हुआ।
  • पानी की खपत 25% तक घटी।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक-तिहाई की कमी आई।
  • उत्पादन लागत पारंपरिक खेती से कम रही।

इस टिकाऊ खेती से किसानों को 18% अधिक लाभ हुआ, क्योंकि SRP (सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म) चावल को प्रीमियम दरों पर बेचा गया।

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालांकि, टिकाऊ चावल की खेती को बड़े पैमाने पर लागू करना आसान नहीं है। किसानों को SRP की 46 प्रक्रियाएं जटिल और समय लेने वाली लगती हैं। वियतनाम में धान के खेत छोटे और बिखरे हुए हैं, जिससे मानकीकरण (स्टैंडर्डाइजेशन) करना मुश्किल हो जाता है।

सवाल उठता है:

  • क्या उपभोक्ता टिकाऊ चावल खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार होंगे?
  • किसानों को इस नई पद्धति को अपनाने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए?
  • कंपनी टिकाऊ खेती और मुनाफे के बीच संतुलन कैसे बनाए?

समाधान की दिशा में विचार

  • प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना: किसानों को ड्रोन, स्वचालित मशीनें और डेटा-आधारित खेती के तरीकों से परिचित कराना।
  • फसल की मार्केटिंग: टिकाऊ चावल को एक प्रीमियम प्रोडक्ट के रूप में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना।
  • कृषि-आधारित प्रशिक्षण: किसानों को टिकाऊ खेती के फायदों के बारे में शिक्षित करना।
  • सरकार और संस्थानों के साथ साझेदारी: टिकाऊ खेती के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान करना।

निष्कर्ष

लोक ट्रोई ग्रुप ने टिकाऊ चावल की खेती में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं। लेकिन इसे व्यापक रूप से लागू करने के लिए किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता है। टिकाऊ चावल न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि यह दुनिया की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक प्रमुख साधन भी बन सकता है।

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