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दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी में बन रहा संभावित चक्रवात ‘फेंगल’: तमिलनाडु-श्रीलंका तटों पर भारी बारिश और तेज हवाओं की चेतावनी

by kishanchaubey
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दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी और पास के पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में बने कम दबाव क्षेत्र ने 25 नवंबर को सुबह 5:30 बजे तक अपनी स्थिति मजबूत कर ली। यह धीरे-धीरे पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ रहा है और जल्द ही डिप्रेशन (अवसाद) में तब्दील होने की संभावना है। अगले दो दिनों में यह तमिलनाडु और श्रीलंका के तटों की ओर बढ़ सकता है।

चक्रवात बनने की संभावना
हालांकि, अभी तक मौसम विभाग ने इसे चक्रवात घोषित नहीं किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह खतरनाक रूप लेकर चक्रवात में बदल सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इसे ‘फेंगल’ (Fengal) नाम दिया जाएगा, जो सऊदी अरब द्वारा प्रस्तावित नाम है। हालांकि, यह भी संभावना है कि यह भूमि को छूने से पहले कमजोर हो जाएगा।

प्रभावित क्षेत्र और संभावित बारिश

  • तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल:
    • 25 और 26 नवंबर को भारी बारिश की संभावना।
    • 26-28 नवंबर के बीच कुछ क्षेत्रों में बहुत भारी बारिश हो सकती है।
  • केरल और माहे:
    • 26 नवंबर को हल्की से मध्यम बारिश और कुछ इलाकों में गरज के साथ छींटे पड़ने के आसार।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह:
    • 25 नवंबर को भारी बारिश के साथ अगले सप्ताह हल्की से मध्यम बारिश का सिलसिला जारी रहेगा।
  • तटीय आंध्र प्रदेश और यनम:
    • 25 और 26 नवंबर को हल्की से मध्यम बारिश और तेज हवाओं के साथ बौछारें पड़ने की संभावना।
  • रायलसीमा:
    • 26 से 28 नवंबर तक भारी बारिश की संभावना।

तेज हवाओं की चेतावनी और समुद्र में स्थिति
कम दबाव के प्रभाव से समुद्र में स्थिति बेहद खराब हो गई है।

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  • मन्नार की खाड़ी, कोमोरिन क्षेत्र, और श्रीलंका तट पर 35-45 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं, जो 55 किमी प्रति घंटे तक तेज हो सकती हैं।
  • दक्षिण बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के पास हवाएं 65 किमी प्रति घंटे तक की गति तक पहुंच सकती हैं।
  • मछुआरों को इन इलाकों में जाने से मना किया गया है।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव

  1. पर्यावरण पर प्रभाव:
    • जैव विविधता पर खतरा:
      तेज हवाओं और भारी बारिश से समुद्री जीवों और तटीय पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मछलियों और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंच सकता है।
    • मिट्टी का कटाव:
      भारी बारिश के कारण मिट्टी कटने से तटीय क्षेत्रों में भूमि की उर्वरता कम हो सकती है।
    • पानी की गुणवत्ता पर असर:
      समुद्र में उथल-पुथल से तटीय इलाकों में पीने के पानी की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
  2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • जलजनित बीमारियां:
      पानी भरने और गंदगी के कारण डेंगू, मलेरिया और टाइफाइड जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
    • मानसिक तनाव:
      तूफान से विस्थापन और घरों को हुए नुकसान के कारण लोगों में मानसिक तनाव और अवसाद बढ़ सकता है।
    • स्वच्छता और पोषण:
      बाढ़ और पानी के जमाव से स्वच्छता की कमी हो सकती है, जिससे संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा है।

बचाव के उपाय

  • मछुआरों को समुद्र में न जाने की सख्त चेतावनी दी गई है।
  • सरकार और स्थानीय प्रशासन को तटीय इलाकों में आपातकालीन सेवाओं और राहत कार्यों के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाना चाहिए, खासकर जलजनित बीमारियों के लिए।
  • लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:
चक्रवात ‘फेंगल’ संभावित रूप से खतरनाक साबित हो सकता है। हालांकि, मौसम विभाग की निगरानी और उचित तैयारियों से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। साथ ही, हमें पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए दीर्घकालिक समाधान पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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