शिवमोग्गा: शिकारिपुरा तालुक के चोराड़ी और ऐतिहासिक गांव इसुरु के बीच स्थित 4,000 हेक्टेयर में फैला कालमाने मिनी फॉरेस्ट सागौन की लकड़ी की तस्करी के कारण खतरे में है। इस तस्करी से परेशान ग्रामीणों ने वन मंत्री ईश्वर खंडरे से शिकायत की है।
सागौन तस्करी और वन विभाग पर आरोप:
ग्रामीणों ने वन विभाग पर ही लकड़ी की ढुलाई में शामिल होने का आरोप लगाया है, क्योंकि कई सागौन के पेड़ अचानक गायब हो गए हैं। इस सागौन का संबंध ब्रिटिश काल से है, और इसे ऐतिहासिक महत्व का माना जाता है।
अंबलिगोला के रेंज वन अधिकारी (RFO) शांतप्पा पुजार, जो एक साल पहले पदभार संभाल चुके हैं, ने माना कि यह समस्या गंभीर है और कुछ पेड़ कुछ महीने पहले काटे गए थे, जिन पर मामले दर्ज किए गए थे। लेकिन ग्रामीण और पर्यावरणविद् इस पर असंतुष्ट हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि वन कानूनों में ऐसी खामियां हैं जिनसे दोषी आसानी से बच निकलते हैं।
वन्यजीव और पर्यावरण पर प्रभाव:
कालमाने मिनी फॉरेस्ट एक महत्वपूर्ण हाथी कॉरिडोर है, जहां विभिन्न प्रकार के वन्यजीव रहते हैं। पिछले साल भद्रा वाइल्डलाइफ सर्कल से हाथियों का एक समूह शिवमोग्गा-सागर हाईवे पार कर इस जंगल में आया, जिससे पुराना हाथी कॉरिडोर फिर से स्थापित हुआ। लेकिन वन विभाग की लापरवाही से इस जंगल का आकार घटता जा रहा है।
पर्यावरणविदों की मांग:
रैनलैंड ट्रस्ट के संरक्षणविद् चिराग का कहना है कि वन विभाग का हर पेड़ की कटाई पर अलग मामला दर्ज करने का तरीका अपराधियों को बचने का मौका देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि संबंधित फॉरेस्टर से कई सागौन के पेड़ों के गायब होने के बारे में पूछताछ की जानी चाहिए।
मजबूत वन कानून और स्टाफ की आवश्यकता:
एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने बताया कि वन सुरक्षा के लिए कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और उन्हें सही ढंग से तैनात करना बहुत जरूरी है। खासकर स्थानीय समुदाय से लंबे समय से तैनात गार्ड और फॉरेस्टर को समय-समय पर बदला जाना चाहिए। साथ ही संवेदनशील इलाकों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और ग्रामीणों के साथ बेहतर संबंध बनाना भी आवश्यक है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
वनों का कटाव और सागौन की तस्करी से पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़ता है। जंगलों का आकार घटने से वन्यजीवों का आश्रय छिनता है, और वे आवास क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। सागौन के पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। अगर जंगल नष्ट होते रहे, तो वायु की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।