उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ 2025 से पहले गंगा की सफाई को लेकर एक विशेष दो महीने का अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। इसका मुख्य ध्यान 34 नालों और सीवेज ट्रीटमेंट पर है, जो गंगा में प्रदूषण का कारण बन रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंगा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई थी, जिसके बाद यह योजना बनाई गई है।
मुख्य चुनौतियां:
गंगा में प्रदूषण का एक बड़ा कारण वे 34 नाले हैं जो सीधे गंगा में 128 MLD (मिलियन लीटर प्रति दिन) गंदा पानी छोड़ रहे हैं, खासकर प्रयागराज में। इसके साथ ही, मानसून समाप्त होने के बाद नदी का जलस्तर नीचे चला जाएगा, जिससे प्रदूषण का प्रभाव और भी गंभीर हो सकता है। दिसंबर के अंत तक वर्षा न होने से नदी का जलस्तर घटेगा, जबकि सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी।
मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ उच्च-स्तरीय बैठक की, जिसमें प्रयागराज और अन्य जिलों के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों पर चर्चा की गई।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- स्क्रीनिंग: नालों में बहते कचरे और मृत जानवरों को छानने के लिए स्क्रीनिंग की जाएगी, जिससे गंगा में सीधे गंदगी न जाए।
- पॉन्डिंग: नाले के पानी को रुकाकर जैविक और रासायनिक प्रक्रियाओं से प्रदूषक तत्वों को तोड़ा जाएगा। इससे भारी प्रदूषक तत्वों का असर कम होगा।
- फिल्ट्रेशन (छनाई): नाले के पानी को फ़िल्टर करके उसमें मौजूद भारी कचरे को हटाया जाएगा, ताकि गंगा में साफ पानी जाए।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
गंगा की सफाई से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ने की संभावना है। गंगा में कम प्रदूषण का मतलब है कि जल जीवन सुरक्षित रहेगा और जल गुणवत्ता में सुधार होगा। इससे न केवल जलीय जीवों को लाभ मिलेगा बल्कि गंगा के किनारे बसे लोगों को भी स्वच्छ जल मिलेगा।
हालांकि, प्रदूषण रोकने की यह प्रक्रिया प्रभावी तभी हो सकती है जब इसे समय पर और सही तरीके से लागू किया जाए। यदि नालों की सफाई और जल उपचार में किसी भी तरह की देरी होती है, तो गंगा के जल स्तर के घटने से प्रदूषण का असर और बढ़ सकता है, जिससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।