नई दिल्ली: केंद्रीय सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर कई व्हाइट कैटेगरी यानी प्रदूषण मुक्त माने जाने वाले उद्योगों को वायु और जल प्रदूषण से जुड़े पर्यावरणीय मंजूरी के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से अनुमति लेने की अनिवार्यता से छूट दी है। व्हाइट कैटेगरी में ऐसे उद्योग आते हैं जिनसे प्रदूषण का स्तर नगण्य होता है। CPCB ने 2016 में प्रदूषण स्तर के आधार पर उद्योगों का पुनर्वर्गीकरण करते समय इस श्रेणी को पेश किया था।
नई अधिसूचना के अनुसार, अब इन उद्योगों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अपनी गतिविधियों के लिए प्रदूषण मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होगी। इस कदम का उद्देश्य पर्यावरणीय नियमों को सरल बनाकर उद्योगों को बढ़ावा देना है। इससे पहले, इन उद्योगों को जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत अलग-अलग आवेदन देकर अनुमति लेनी होती थी।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी इस अधिसूचना में उन सभी उद्योगों को छूट दी गई है जिनका प्रदूषण सूचकांक 20 तक का है। साथ ही, जिन उद्योगों ने 14 सितंबर 2006 से पहले MoEFCC से पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त कर ली है, उन्हें भी आगे किसी तरह की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
अब CPCB के पास इन उद्योगों की स्थापना के लिए स्वीकृति देने का अधिकार नहीं होगा। इसके स्थान पर MoEFCC ने कहा है कि सरकार इस अधिसूचना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी कर सकती है।
व्हाइट कैटेगरी में आने वाले उद्योगों में ये शामिल हैं:
- एयर कूलर, एयर कंडीशनर, साइकिल, बच्चों की गाड़ियां (बेबी कैरिज) की असेंबली
- पुराने कागज की हाइड्रोलिक बेलिंग, चाय का ब्लेंडिंग और पैकिंग
- प्लास्टर ऑफ पेरिस से चॉक बनाना, सूती और ऊनी वस्त्र निर्माण
- डीजल पंप की मरम्मत, फाउंटेन पेन निर्माण
- नारियल के उत्पाद, धातु के ढक्कन, कंटेनर, जूते के ब्रश, वायर ब्रश
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
यह कदम ऐसे उद्योगों के लिए है जिनसे प्रदूषण का स्तर अत्यधिक कम होता है। व्हाइट कैटेगरी में आने वाले ये छोटे और कम प्रदूषणकारी उद्योगों के लिए परमिट में छूट देने से इनके संचालन में सरलता आएगी। स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सीमित असर होने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि इन उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक नगण्य माने जाते हैं और ये जल, वायु और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत कम प्रभाव डालते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय के चलते उद्योगों में प्रदूषण मानकों का पालन कमजोर हो सकता है, और यदि समय पर मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लागू नहीं की गई, तो इसका न्यूनतम स्तर का असर पर्यावरण और स्थानीय स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।