रविवार तड़के छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के महेशपुर गांव के पास जंगलों में एक दुखद घटना में, पांच और 11 साल के दो बच्चों की हाथियों के झुंड से कुचलकर मौत हो गई। ये बच्चे पहाड़ी पर स्थित एक अस्थायी झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे, जो पांडो जनजाति से थे। पांडो जनजाति छत्तीसगढ़ की उन सात “विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों” (PVTG) में से एक है, जिनकी आबादी कम और जीवनशैली बेहद कठिन होती है
घटना रात करीब 1 बजे की है जब हाथियों का एक झुंड उस इलाके में पहुंचा और एक झोपड़ी को तोड़ दिया, जिसमें ये बच्चे थे। हादसे में बाकी लोग किसी तरह बचकर बाहर निकल गए। शनिवार रात को वन विभाग ने महेशपुर गांव के निवासियों को हाथियों के इस झुंड की गतिविधियों की जानकारी दी थी, लेकिन जंगल के अंदर गहराई में रहने वाली पांडो जनजाति तक यह सूचना नहीं पहुंच सकी।
सूरजपुर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) पंकज कमल ने बताया कि घटना के बाद इलाके की अन्य झोपड़ियों को भी एहतियातन खाली करा लिया गया है। एक अधिकारी ने बताया कि यह क्षेत्र हाथियों के पारंपरिक मार्ग में आता है, और उनकी गतिविधियों पर कई दिनों से नजर रखी जा रही थी। यह झुंड सिर्फ जंगल में ही था और गांवों से दूर रहकर आगे बढ़ रहा था।
भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए, वन विभाग ने बताया कि वे अन्य सरकारी विभागों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के घर बनवाने की योजना पर काम कर रहे हैं ताकि हाथियों से लोगों को सुरक्षा मिल सके। इसके अलावा, जंगल के अंदर रहने वाले ग्रामीणों और जनजातियों की पहचान कर उन्हें सुरक्षित जगहों पर स्थानांतरित करने की योजना भी बनाई जा रही है।
मृत बच्चों के परिवार को तुरंत 25,000 रुपये की राहत राशि दी गई है, और बाकी 5.75 लाख रुपये की सहायता राशि जल्द ही औपचारिकताओं के बाद दी जाएगी।
इस साल जनवरी में भी सूरजपुर जिले में एक ग्रामीण की मौत हाथियों से हो गई थी जब उसने अपने गन्ने के खेत में हाथियों के झुंड को रोकने की कोशिश की थी।
राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में पिछले पांच वर्षों में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष में 303 से अधिक लोग मारे गए हैं। इन घटनाओं से प्रभावित जिलों में सुरगुजा, रायगढ़, कोरबा, सूरजपुर, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, बालोद, और बलरामपुर शामिल हैं, जिनमें से अधिकतर उत्तर और मध्य छत्तीसगढ़ में हैं।
पर्यावरण और मानव-हाथी संघर्ष पर प्रभाव:
इन घटनाओं के पीछे हाथियों के पारंपरिक मार्गों में आने वाले मानव बस्तियों का होना और जंगलों में रहने वाले जनजातीय समूहों का विस्थापन न हो पाना है। इन घटनाओं से ना केवल मानव जीवन का नुकसान होता है, बल्कि हाथियों के व्यवहार और पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्थायी बस्तियों और अन्य उपायों से दोनों पक्षों के नुकसान को कम करने की जरूरत है।