दूसरे साल लगातार, पृथ्वी पर रिकॉर्ड गर्मी दर्ज की जा रही है। इस साल पहली बार, वैश्विक तापमान औद्योगिक युग से पहले के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) अधिक हो गया है। यह जानकारी यूरोपीय जलवायु एजेंसी कोपरनिकस ने साझा की।
कोपरनिकस के निदेशक, कार्लो बुंटेम्पो का कहना है, “गर्मी का यह लगातार बढ़ना वाकई चिंताजनक है।” उनका मानना है कि यह बढ़ती गर्मी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का परिणाम है जो वैश्विक तापमान को ऊपर की ओर ले जा रही हैं।
गर्मी बढ़ाने वाले अन्य कारण
बुंटेम्पो के अनुसार, कुछ अन्य कारण भी गर्मी के इस स्तर तक पहुंचने में भूमिका निभाते हैं, जैसे:
- एल नीनो: प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों का अस्थायी गर्म होना, जो पूरे विश्व में मौसम को प्रभावित करता है।
- ज्वालामुखीय विस्फोट: जो वायुमंडल में पानी का भाप और धूल का प्रसार करते हैं।
- सूरज से ऊर्जा में बदलाव: जो पृथ्वी के तापमान को प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि एल नीनो जैसे अस्थायी प्रभावों के बावजूद दीर्घकालिक तापमान वृद्धि चिंताजनक है। “एक मजबूत एल नीनो हमें यह झलक देता है कि आने वाले एक दशक में सामान्य तापमान कैसा हो सकता है,” कहते हैं बर्कले अर्थ के शोधकर्ता ज़ीक हॉसफादर।
रिकॉर्ड गर्मी और COP29 बैठक
यह खबर ऐसे समय आई है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो जलवायु परिवर्तन को “धोखा” मानते हैं और तेल उत्पादन बढ़ाने की योजना रखते हैं, फिर से राष्ट्रपति चुने गए हैं। यह भी ऐसे समय में है जब 11-22 नवंबर के बीच अज़रबैजान में संयुक्त राष्ट्र की अगली जलवायु सम्मेलन (COP29) की शुरुआत होने वाली है, जहां क्लीन ऊर्जा के लिए वित्तीय सहायता पर चर्चा होगी।
1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा और इसके महत्व
2015 के पेरिस समझौते के तहत यह लक्ष्य तय किया गया था कि औद्योगिक युग से पहले के मुकाबले वैश्विक औसत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) के भीतर रखा जाएगा, लेकिन ऐसा केवल दीर्घकालिक औसत पर हो सकता है। एक साल के लिए इस सीमा को पार कर लेना अलग बात है, लेकिन यह चेतावनी जरूर है कि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इसे हासिल करना मुश्किल हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि औसतन तापमान पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस (2.3 डिग्री फारेनहाइट) बढ़ चुका है। इस कारण मौसम की चरम घटनाएं जैसे हीट वेव्स, तूफान, और सूखा और भी बुरी स्थिति में पहुंच सकते हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
गर्मी के बढ़ते स्तर से स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर गंभीर असर हो सकता है। तापमान बढ़ने से:
- हीट वेव्स में वृद्धि होगी जिससे लोग डिहाइड्रेशन और थकावट से पीड़ित हो सकते हैं।
- तूफान और बाढ़ जैसी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे जीवन और संपत्ति दोनों को खतरा है।
- सभी प्रकार की कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है जिससे खाद्य संकट का खतरा बढ़ सकता है।
- पानी की कमी और प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
वैश्विक स्तर पर प्रयासों की जरूरत
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक रॉब जैक्सन ने कहा है कि संभव है कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पहले ही खो चुके हों। यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया के वैज्ञानिक माइकल मान ने कहा कि बिना ठोस कदम उठाए, जल्द ही इस सीमा को हासिल करना और मुश्किल हो जाएगा।
इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से एक बेहतर दिशा मिल सकती है। दुनियाभर से एकत्र आंकड़ों पर आधारित कोपरनिकस की रिपोर्ट वैज्ञानिकों को इस खतरे के प्रति अधिक जागरूक करती है।
अज़रबैजान में होने वाले COP29 सम्मेलन के दौरान यह मुद्दा भी प्रमुख रूप से चर्चा का विषय होगा। सभी राष्ट्रों के पास अब भी यह अवसर है कि वे मिलकर वैश्विक तापमान में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए काम करें।