मंगलवार को असम में वन विभाग के गार्ड्स की गोलीबारी में एक कक्षा 6 के छात्र समेत कम से कम दो लोग घायल हो गए। पहली घटना नलबाड़ी जिले के बालितारा गांव में हुई, जहां एक छात्र को गोली लग गई। यह घटना तब हुई जब वन विभाग के गार्ड्स ने जंगली हाथियों को भगाने के लिए गोली चलाई।
दरअसल, लगभग 12 हाथियों का झुंड धान के खेतों को नुकसान पहुंचा रहा था और स्थानीय लोगों को परेशान कर रहा था। जब वन विभाग के गार्ड्स ने उन्हें भगाने के लिए गोलीबारी की, तो गलती से एक गोली छात्र के पैर में लग गई। घायल छात्र को नलबाड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। घटना के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग के कर्मचारियों को गांव से बाहर जाने से रोक दिया, और पुलिस को हस्तक्षेप कर उन्हें छुड़ाना पड़ा।
दूसरी घटना होजई जिले के लुमडिंग रिजर्व फॉरेस्ट में हुई। यहाँ, आठ महिलाएं लकड़ियां इकट्ठा करने के लिए जंगल में गई थीं। इस दौरान गश्त कर रहे चार वन गार्ड्स ने उन पर गोली चला दी, जिसमें एक महिला के सिर और पीठ में तीन गोलियां लगीं। महिला को होजई सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है। पुलिस ने घटना स्थल पर जाकर मामले की जांच शुरू कर दी है।
घटनाओं का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
असम में हाथियों का जंगलों से बाहर निकलना और इंसानों के बस्तियों में आना इस बात का संकेत है कि वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है। जंगलों की कटाई, खेती का विस्तार और इंसानी बसावट के कारण जंगली जानवरों को भोजन और पानी की तलाश में गांवों की ओर आना पड़ रहा है। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है।
इन घटनाओं से लोगों के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ता है। गोली लगने से पीड़ितों के शारीरिक स्वास्थ्य को तो नुकसान होता ही है, मानसिक रूप से भी वे भयभीत हो जाते हैं। विशेषकर बच्चों के मानसिक विकास पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में वन्यजीवों के प्रबंधन के लिए सुरक्षित और मानवीय तरीकों की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके और इंसानों तथा वन्यजीवों के बीच एक सुरक्षित सह-अस्तित्व सुनिश्चित हो।