आइसलैंड के वीती क्रेटर की ढलानों से जहरीली सल्फर गैस, जो सड़े हुए अंडों जैसी दुर्गंध छोड़ती है, वेंट्स से निकलती दिखी, जबकि नीले रंग की झील की सतह पर कार्बन डाइऑक्साइड के बुलबुले फूटते नजर आए। चारों ओर भाप की चादर बिछी हुई थी, जो ढीली चट्टानों से बने इस रहस्यमय परिदृश्य को और भी डरावना बना रही थी।
“वीती” शब्द का अर्थ आइसलैंडिक भाषा में “नरक” है, और इस इलाके की स्थिति इसे पूरी तरह से सही साबित करती है। इसी डरावने इलाके में, पिछले साल अगस्त में आइसलैंडिक मौसम विज्ञान कार्यालय की ज्वालामुखी विशेषज्ञ मिशेल पार्क्स धीरे-धीरे पानी के किनारे की ओर बढ़ रही थीं। उन्होंने अपनी कमर पर एक मॉनिटर बांधा हुआ था, जो उन्हें चेतावनी देने के लिए था, अगर गैसों का स्तर खतरनाक हो जाता। पानी के तापमान की जांच के लिए उन्होंने झील में एक थर्मामीटर डाला, जिसका तापमान 26.4 डिग्री सेल्सियस (79.5 डिग्री फ़ारेनहाइट) पाया गया, जो हाल के आंकड़ों के अनुरूप था। यह स्थिति फिलहाल राहत देने वाली थी।
अस्क्या ज्वालामुखी: इतिहास और वर्तमान स्थिति
अस्क्या ज्वालामुखी, जो आइसलैंड के मध्य हाइलैंड्स में वत्नाजोकुल नेशनल पार्क में स्थित है, 1875 में एक जबरदस्त विस्फोट से बना था। उस समय के विस्फोट ने इस विशाल क्रेटर का निर्माण किया, जिसे हम आज वीती क्रेटर के नाम से जानते हैं। अस्क्या की आखिरी बार हलचल 1961 में हुई थी, जो अपेक्षाकृत कमजोर थी। इसके बाद कई दशकों तक यह ज्वालामुखी शांत रहा, लेकिन 2021 में वैज्ञानिकों को चौंकाने वाली गतिविधियां देखने को मिलीं।
अस्क्या में हलचल: वैज्ञानिकों की चिंता
2021 में मिशेल पार्क्स और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ ही महीनों में अस्क्या ज्वालामुखी तेजी से ऊपर उठने लगा था, जो लगभग 11 सेंटीमीटर (4.3 इंच) तक पहुँच गया। यह घटना “इन्फ्लेशन” कहलाती है, जो तब होती है जब ज्वालामुखी के नीचे मैग्मा या दबाव वाली गैसें इकट्ठी होने लगती हैं, जिससे जमीन ऊपर की ओर धकेल दी जाती है।
पिछले तीन वर्षों में, अस्क्या में यह उभार बढ़कर 80 सेंटीमीटर (32 इंच) तक पहुँच गया है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह उठाव 44 मिलियन घन मीटर (1.6 बिलियन घन फीट) मैग्मा के कारण है, जो सतह से लगभग तीन किलोमीटर (दो मील) नीचे बने मौजूदा जलाशय में जमा हो रहा है।
पर्यावरणीय प्रभाव
अस्क्या ज्वालामुखी की बढ़ती हलचल न केवल वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि इसका गहरा पर्यावरणीय प्रभाव भी हो सकता है। यदि भविष्य में ज्वालामुखी विस्फोट होता है, तो यह बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, और अन्य जहरीली गैसों को वातावरण में छोड़ सकता है। ये गैसें हवा की गुणवत्ता को खराब कर सकती हैं और एसिड रेन का कारण बन सकती हैं, जो वनस्पति, जल स्रोतों और वन्यजीवों के लिए घातक साबित हो सकती है।
इसके अलावा, ज्वालामुखीय विस्फोट से निकलने वाली राख और धूल के कण वायुमंडल में लंबे समय तक बने रह सकते हैं, जिससे सूर्य की किरणों का अवरोधन होता है और यह वैश्विक तापमान में अस्थायी रूप से कमी ला सकता है। ऐसी स्थितियों ने पहले भी वैश्विक जलवायु में परिवर्तन किया है, जो कृषि और मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
झील और उसके आस-पास के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर भी ज्वालामुखी की गतिविधियों का प्रभाव पड़ सकता है। पानी के तापमान में वृद्धि और रासायनिक संरचना में बदलाव से झील में रहने वाले जीवों और वनस्पतियों की जीवनशैली प्रभावित हो सकती है।
वैज्ञानिकों की सतर्कता और भविष्य की संभावना
इस घटना ने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं, क्योंकि सतह के नीचे इस प्रकार की मैग्मा की गतिविधि ज्वालामुखी विस्फोट का संकेत हो सकती है। मिशेल पार्क्स और उनकी टीम नियमित रूप से अस्क्या ज्वालामुखी की निगरानी कर रही है, ताकि अगर भविष्य में कोई गंभीर स्थिति बनती है, तो समय रहते लोगों को चेतावनी दी जा सके।
हालांकि अभी तक कोई विस्फोट के संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन अस्क्या की लगातार बढ़ती गतिविधि इस ओर इशारा करती है कि भविष्य में इसका व्यवहार अप्रत्याशित हो सकता है। वैज्ञानिक सतर्क हैं और यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि कोई भी संभावित खतरा नज़रअंदाज़ न हो, ताकि जान-माल की सुरक्षा की जा सके।
इस घटनाक्रम ने यह भी साबित किया है कि प्रकृति के रहस्यों को समझना कितना महत्वपूर्ण है और कैसे वैज्ञानिक, अपने उपकरणों और तकनीकों के साथ, इन गतिविधियों पर नज़र रखते हैं ताकि इंसानी जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।