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अलवर की कपास ने बनाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, यूरोपीय देशों में निर्यात से किसानों को आर्थिक लाभ

by reporter
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अलवर, राजस्थान: राजस्थान के अलवर शहर की पहचान पहले प्याज और सरसों से थी, लेकिन अब यहां की कपास ने भी अपनी विशेष पहचान बना ली है। अलवर की कपास की गुणवत्ता इतनी बेहतर है कि उसकी मांग यूरोपीय देशों में तेजी से बढ़ रही है। जिले में पांच प्रमुख मंडियां हैं, जहां से हर दिन बड़ी मात्रा में कपास विदेशों को भेजी जा रही है, जिससे किसानों और व्यापारियों को सीधा फायदा हो रहा है।

अलवर की प्याज और सरसों का महत्व
अलवर की प्याज ‘लाल प्याज’ के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध है। नासिक के बाद अलवर की प्याज की मंडी देश की दूसरी सबसे बड़ी मंडी मानी जाती है। यहां से प्याज न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में बल्कि अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, और पाकिस्तान जैसे देशों में भी निर्यात की जाती है। इसी तरह, अलवर की सरसों भी अपनी विशेष पहचान रखती है और यहाँ से उत्पादित सरसों का तेल पूरे देश में सप्लाई होता है।

कपास की बढ़ती मांग
अब अलवर की कपास भी विदेशी बाजार में लोकप्रिय हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में अलवर और इसके आसपास के इलाकों में कपास की पैदावार बढ़ी है। हर दिन अलवर और आस-पास की मंडियों में लगभग 6000 गाठ कपास बिकने के लिए पहुँच रही है। यूरोपीय देशों जैसे फ्रांस, डेनमार्क और पोलैंड में इसकी मांग कई गुना बढ़ी है, और इसका कारण है यहाँ की कपास की बेहतर गुणवत्ता। इससे पहले, बांग्लादेश में अलवर से बड़ी मात्रा में कपास भेजी जाती थी, क्योंकि वहां कपड़े का सबसे बड़ा कारोबार है।

अलवर मंडी के व्यापारियों के अनुसार, इस समय कपास के दाम लगभग 7700 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहे हैं, जिससे किसान बहुत खुश हैं। अच्छे दाम मिलने से अब आस-पास के इलाकों के किसान भी अलवर मंडी में कपास बेचने आ रहे हैं। अलवर जिले में बड़ौदा, गोविंदगढ़, और खैरथल की मंडियों से कपास यूरोपीय देशों में निर्यात की जा रही है, और इसी के साथ पंजाब, हरियाणा, गुजरात और भीलवाड़ा की बड़ी कपड़ा मिलों में भी इसकी भारी मांग है।

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कपास की खेती में किसानों की रुचि बढ़ी
किसानों की रुचि अब कपास की खेती में फिर से बढ़ने लगी है। 2023 में जहाँ 22,314 हेक्टेयर में कपास की बुवाई हुई थी, वहीं 2024 में यह क्षेत्रफल बढ़कर 40,000 हेक्टेयर से अधिक हो गया। पिछले वर्षों में, खासकर 2018 और 2019 में कपास का उत्पादन बड़े क्षेत्र में हुआ था, लेकिन उस समय किसानों को अच्छे दाम नहीं मिले थे, जिससे वे कपास की खेती से दूर होने लगे थे। अब जब उन्हें अच्छे दाम मिल रहे हैं, तो किसान एक बार फिर कपास की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

कुल मिलाकर, अलवर की कपास ने अब न केवल स्थानीय बाजार बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी खास पहचान बना ली है। इसके चलते यहाँ के किसानों और व्यापारियों को आर्थिक लाभ मिल रहा है और अलवर की मंडियां प्याज, सरसों और अब कपास के लिए भी प्रसिद्ध होती जा रही हैं।

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