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कृषि में जल संकट से निपटने के लिए FAO सदस्य देशों ने अपनाई रोम घोषणा, जलवायु संकट के बीच टिकाऊ समाधान पर जोर

by reporter
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17 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के सदस्य देशों, प्रतिनिधियों और वैश्विक साझेदारों ने “कृषि में जल संकट के समाधान” के लिए रोम घोषणा को अपनाया। इस घोषणा का उद्देश्य जलवायु संकट से बढ़ते जल संकट का समाधान करना है, जो खासकर कृषि क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है।

FAO के इस WASAG (कृषि में जल संकट का वैश्विक ढांचा) पहल की शुरुआत 2016 में माराकेच के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में हुई थी, ताकि जल संकट की चुनौतियों से निपटा जा सके। संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही चेतावनी दी थी कि 2050 तक वैश्विक आबादी का आधे से अधिक हिस्सा ऐसे क्षेत्रों में रहेगा, जहाँ कम से कम एक महीने तक पानी की भारी कमी होगी। कृषि, जो 70% से अधिक मीठे जल का उपयोग करती है, इस संकट से विशेष रूप से प्रभावित होगी।

घोषणा के मुख्य बिंदु:

  1. राजनीतिक समर्थन: इस घोषणा के जरिए, देश जल संकट और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई नीतियों, कानूनों, वित्तीय सहायता, और जल प्रबंधन के लिए अधिक राजनीतिक समर्थन जुटाने की दिशा में प्रतिबद्ध हुए हैं।
  2. खाद्य सुरक्षा पर ध्यान: यह घोषणा जल संकट और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर कम करने के लिए की गई है, ताकि बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से भी निपटा जा सके।

FAO के महानिदेशक क्व डोंग्यू ने इस अवसर पर कहा कि “जल सुरक्षा, कृषि-खाद्य प्रणालियों और जलवायु लचीलेपन” को आपस में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि अधिक टिकाऊ और लचीली कृषि प्रणालियाँ बनाई जा सकें। उनका कहना था कि जल संकट का समाधान ढूंढने के लिए कृषि को अंतरराष्ट्रीय जलवायु चर्चाओं के केंद्र में लाना जरूरी है।

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यह घोषणा FAO के वार्षिक विश्व खाद्य फोरम (WFF) के दौरान हुई, जिसका आयोजन FAO मुख्यालय, रोम में 14 से 18 अक्टूबर के बीच किया गया था। इस साल फोरम का विषय था “आज और कल के लिए सभी के लिए अच्छा भोजन”

पारिवारिक कृषि: विश्व के खाद्य उत्पादन का मुख्य स्तंभ

WFF के मुख्य आकर्षणों में से एक FAO और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) द्वारा वैश्विक पारिवारिक कृषि मंच की शुरुआत थी। इस मंच के जरिए 550 मिलियन से अधिक पारिवारिक किसानों को जोड़ा जाएगा, जो विश्व के 70-80% खाद्य उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। यह दर्शाता है कि दुनिया का अधिकांश भोजन पारिवारिक खेती से आता है।

पारिवारिक किसानों की भूमिका और चुनौतियाँ:

  • पारिवारिक किसान, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, विविध और पौष्टिक खाद्य उगाते हैं और फसलों की जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
  • हालाँकि, ये किसान कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे उत्पादन के लिए संसाधनों, बाज़ार तक पहुंच और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं की कमी।

2024: पारिवारिक कृषि दशक का मध्य बिंदु

वर्ष 2024 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारिवारिक कृषि दशक (2019-2028) के बीच का महत्वपूर्ण वर्ष माना गया है। इस दशक का उद्देश्य पारिवारिक किसानों की सहायता करना है, ताकि वे अपनी आजीविका सुधार सकें और वैश्विक खाद्य प्रणाली में योगदान कर सकें।

IFAD की उपाध्यक्ष जेरार्डिन मुकेशिमाना ने घोषणा की कि संगठन अगले तीन वर्षों में $10 बिलियन का निवेश करेगा। यह निवेश ग्रामीण इलाकों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने, आय बढ़ाने, और ग्रामीण उद्यमियों को नए व्यवसाय शुरू करने और रोजगार सृजन में मदद करेगा।

हालाँकि पारिवारिक किसानों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, उनकी आजीविका अभी भी अनिश्चित बनी हुई है। वे उत्पादन संसाधनों और बाज़ार तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

पर्यावरणीय महत्व:

यह घोषणा न केवल खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण की रक्षा के लिए भी आवश्यक है। कृषि क्षेत्र में पानी का अत्यधिक उपयोग जलवायु संकट को और गहरा करता है। इसीलिए, जल प्रबंधन को सुधारने और अधिक टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली स्थापित करने से न केवल पानी की कमी को हल किया जा सकेगा, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाए रखा जा सकेगा।

  • कृषि में जल प्रबंधन सुधारने से भूमि की गुणवत्ता बनी रहती है, जिससे जैव विविधता को भी संरक्षण मिलता है।
  • पानी की कमी से बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं, जिनका असर न केवल पर्यावरण पर बल्कि मानव जीवन पर भी पड़ता है।

इसलिए, यह घोषणा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए एक मजबूत कदम है।

कृषि में जल संकट का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, खासकर जब जलवायु संकट इसे और बढ़ा देता है। यहाँ कुछ प्रमुख प्रभाव और उनका महत्व है:

  1. खाद्य सुरक्षा पर असर: जल संकट से फसल उत्पादन में कमी होती है, जिससे खाने-पीने की चीज़ों की कमी हो सकती है। इससे पोषण में कमी आ सकती है, जो बच्चों और कमजोर आबादी में कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
  2. साफ पानी की कमी: जब कृषि के लिए पानी की आपूर्ति बाधित होती है, तो पीने और घरेलू इस्तेमाल के लिए साफ पानी की कमी होती है। इससे बीमारियाँ जैसे डायरिया, पीलिया, और अन्य जलजनित रोगों का खतरा बढ़ता है।
  3. पानी की गुणवत्ता में गिरावट: कृषि के लिए अत्यधिक पानी का उपयोग जलस्रोतों को प्रदूषित कर सकता है, जिसमें नाइट्रेट्स और कीटनाशकों का बढ़ता स्तर शामिल है। यह प्रदूषण पीने के पानी को असुरक्षित बना सकता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे कैंसर, प्रजनन समस्याएँ, और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।
  4. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: जल संकट से जुड़ी खाद्य और पानी की कमी से परिवारों में तनाव और चिंता बढ़ सकती है। इससे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ परिवार कृषि पर निर्भर होते हैं।
  5. बीमारियों के फैलने का खतरा: जलवायु परिवर्तन और जल संकट से प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़ और सूखा) की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जो स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वच्छता सेवाओं को बाधित करती हैं। इससे मलेरिया, डेंगू, और अन्य जलवायु-आधारित बीमारियों का खतरा बढ़ता है।

महत्व: इस जल संकट से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयास आवश्यक हैं, क्योंकि यह न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। टिकाऊ जल प्रबंधन नीतियों और कृषि पद्धतियों को अपनाने से हम आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से बच सकते हैं।

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