Melting Glaciers Issues: किंघई-तिब्बती पठार में ग्लेशियरों के पिघल कर बहने से हर साल 947 किलोग्राम पारा निकलता है। पारा यानी मरकरी बहुत ही ज्यादा टॉक्सिक पोल्यूटेंट्स में से एक है जो दुनिया बाहर में मौजूद है।
पारा एक हानिकारक पदार्थ है जो पूरी दुनिया में पाया जा सकता है। यह लोगों द्वारा किए जाने वाले कामों जैसे कि कारखानों, साथ ही प्राकृतिक घटनाओं जैसे कि जंगल की आग, ज्वालामुखी और धूल के तूफानों से आता है।
एक बार जब यह हवा में पहुँच जाता है, तो यह नदियों और झीलों जैसे पानी में उतरने से पहले बहुत दूर तक यात्रा कर सकता है।
नदियों को प्रभावित करता है पारा
वैज्ञानिकों ने मापा कि मिंगयोंग जलग्रहण क्षेत्र और पूरे किंघई-तिब्बती पठार में पिघलते ग्लेशियरों से कितना पारा (एक प्रकार की हानिकारक धातु) निकलता है। उन्होंने पाया कि प्रकृति में कई अलग-अलग चीजें, जैसे जल प्रवाह और पर्यावरण, ग्लेशियरों से पोषित नदियों में पारा कैसे पहुँचता है, इसे प्रभावित करते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है!
दुनियाभर में ताजे और मीठे पानी को ऩुकसान
रिसर्च के मुताबिक जब मानव जाति हवा और पानी में पारे का उत्सर्जन करते हैं, तो यह वास्तव में दुनिया भर में पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण दुनिया भर में मौजूद ताजे और मीठे पानी के भंडार के रूप में क्रोमोस्फीयर ने बर्फ, बर्फ के कोर और पिघले हुए पानी में पारे यानी मरकरी की मात्रा बढ़ा दी है। क्योंकि ग्लेशियर में जो पारा mila होता है वो ग्लेशियर पिघलने के बाद दुनिया भर के पानी के स्त्रोतों में मिल जाता है। जिससे मनुष्यों के स्वास्थ के लिए भारी खतरा पैदा हो सकता है।
मानसून में होता है ज्यादा खतरा
मानसून के मौसम में ग्लेशियर पिघलने पर पानी में मरकरी की मात्रा ज्यादा होती है। जबकि मानसून के अलावा अन्य मौसम में ग्लेशियर के पिघल कर behne वाले पानी में मरकरी काम पाई जाती है।
बता दें मिंगयोंग जलग्रहण क्षेत्र में मानसून के दौरान पारे का प्रवाह लगभग 343.8 ग्राम प्रति वर्ष था। जिसमें पिघले पानी में 2.4 फीसदी, बारिश के पानी में 76.9 फीसदी और भूजल में 20.7 फीसदी शामिल था।
दो तरीकों से करता है प्रभावित
ग्लेशियर दो मुख्य तरीकों से पिघले पानी में पारे की मात्रा को बदल सकते हैं। सबसे पहले, जब मिंगयोंग ग्लेशियर पिघलता है, तो यह लंबे समय से बर्फ में फंसा हुआ पारा बाहर निकाल सकता है। दूसरा, जब बर्फ पिघलती है, तो पानी ग्लेशियर के नीचे की चट्टानों के साथ मिल सकता है, जिससे पानी में और पारा भी मिल सकता है।