राजस्थान के केकड़ी जिले में खारी नदी पर अवैध खनन को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाते हुए राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) के क्षेत्रीय अधिकारी को खनन पट्टा क्षेत्र का दौरा करने और पर्यावरणीय अनुपालन की जांच करने के निर्देश दिए हैं।
ट्रिब्यूनल ने 19 दिसंबर 2025 की सुनवाई में अधिकारी को पर्यावरण मंजूरी (ईसी), संचालन अनुमति (सीटीओ) तथा पर्यावरण मानकों के पालन की रिपोर्ट एनजीटी को सौंपने का आदेश दिया। साथ ही, सुनवाई के दौरान दर्ज किया गया कि खारी नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बनी रुकावट अब हटा दी गई है।
यह मामला सावर ब्लॉक के गुलगांव ग्राम पंचायत क्षेत्र में खनन गतिविधियों से जुड़ा है, जहां लंबे समय से पर्यावरणीय उल्लंघनों की शिकायतें उठ रही हैं। खननकर्ता ने ट्रिब्यूनल को आश्वासन दिया कि भविष्य में सभी कार्य ईसी, सीटीओ शर्तों, खनन योजना और पर्यावरणीय नियमों का सख्ती से पालन करते हुए किए जाएंगे। एनजीटी ने स्पष्ट चेतावनी दी कि किसी भी उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई होगी।
मामले का इतिहास गहरा है। 19 नवंबर 2024 को एनजीटी ने खनन पट्टाधारकों द्वारा शर्तों के पालन की जांच के लिए संयुक्त समिति गठित की थी। समिति की 18 जनवरी 2025 की रिपोर्ट में खारी नदी के मार्ग में बोल्डरों से बनी स्पष्ट रुकावटों की पुष्टि हुई, जो नदी के प्रवाह को बाधित कर रही थीं। इसके बाद खनन एवं भू-विज्ञान निदेशक, केकड़ी जिला कलेक्टर और आरएसपीसीबी ने दावा किया कि रुकावटें हटा दी गईं, लेकिन आवेदक ने अदालत में पेश होकर कहा कि नदी का मार्ग अभी भी अवरुद्ध है।
समिति रिपोर्ट के आधार पर 3 जुलाई 2025 को एनजीटी ने एहतियाती सिद्धांत अपनाते हुए खनन पट्टे और आसपास के क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी। केकड़ी के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए गए कि अगले आदेश तक किसी भी खनन की अनुमति न दी जाए।
8 सितंबर 2025 को ट्रिब्यूनल ने संयुक्त समिति की सिफारिशों को तत्काल लागू करने और नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के आदेश जारी किए। हाल ही में 8 दिसंबर 2025 के आदेश में अधिकारियों और खननकर्ताओं को नदी में बाधा बने बोल्डर हटाने तथा संबंधित एफआईआर की जांच पर अतिरिक्त जवाब दाखिल करने का समय दिया गया था।
एनजीटी अब नजर रखे हुए है कि क्या खनन वास्तव में पर्यावरण दायरे में होगा या खारी नदी और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को फिर खतरा होगा। पर्यावरणविदों का मानना है कि ऐसी कार्रवाइयां नदियों के संरक्षण के लिए मिसाल कायम करेंगी। मामले की अगली सुनवाई में रिपोर्ट के आधार पर फैसला होगा।
