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पराली जलने में भारी कमी के बावजूद दिल्ली-एनसीआर की हवा अब भी ‘गंभीर’

by kishanchaubey
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दिल्ली-एनसीआर में इस बार सर्दियों की शुरुआत में पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पराली का योगदान ज्यादातर दिन 5% से कम और अधिकतम 22% तक ही रहा। फिर भी अक्टूबर से 15 नवंबर तक दिल्ली की हवा लगातार ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी रही। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के नए विश्लेषण में साफ कहा गया है कि पराली को अब दिल्ली के प्रदूषण का बहाना नहीं बनाया जा सकता; असली जिम्मेदार स्थानीय स्रोत हैं।

सीएसई के सीपीसीबी डेटा आधारित विश्लेषण के अनुसार पीएम2.5 के साथ-साथ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का स्तर भी लगातार ऊंचा बना हुआ है। ये दोनों गैसें मुख्य रूप से वाहनों के धुएं से निकलती हैं। सुबह और शाम के पीक ट्रैफिक घंटों में ये तीनों प्रदूषक एक साथ बढ़ते हैं और सर्दी की उलटी परत में फंस जाते हैं। दिल्ली के 22 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर 59 दिनों में 30 से ज्यादा दिन CO मानक से ऊपर रहा। द्वारका सेक्टर-8 में तो 55 दिन तक मानक उल्लंघन दर्ज हुआ।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने चेतावनी दी है कि प्रदूषकों का यह जहरीला मिश्रण हवा को और खतरनाक बना रहा है, लेकिन हर साल सर्दी में नियंत्रण के उपाय सिर्फ धूल तक सीमित रह जाते हैं; वाहन, उद्योग, कचरा और ठोस ईंधन जैसे बड़े स्रोतों पर ध्यान नहीं जाता।

प्रदूषण हॉटस्पॉट बढ़कर 13 से अधिक हो गए हैं। जहांगीरपुरी (119 μg/m³), आनंद विहार, वजीरपुर, बवाना सबसे खराब हैं। एनसीआर के छोटे शहर जैसे बहादुरगढ़ में दिल्ली से भी ज्यादा दिन घना स्मॉग रहा।

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सीएसई ने तत्काल बड़े कदमों की मांग की है: सभी वाहनों का तेजी से विद्युतीकरण, एकीकृत पब्लिक ट्रांसपोर्ट का विस्तार, निजी वाहनों पर पार्किंग-कंजेशन चार्ज, उद्योगों में स्वच्छ ईंधन, कचरा जलाने पर पूर्ण रोक, निर्माण धूल पर सालभर नियंत्रण और पराली का वैकल्पिक उपयोग।

रॉयचौधरी ने कहा, “अब छोटे-छोटे कदम काफी नहीं। या तो बड़े पैमाने पर बदलाव होंगे, नहीं तो प्रदूषण फिर खतरनाक स्तर पर चला जाएगा।”

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