दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने यमुना सफाई को लेकर नई उम्मीद जगाई है। CSE की रिपोर्ट यमुना: द एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर में कहा गया है कि नदी की सफाई असंभव नहीं, बस सोच और कार्यप्रणाली बदलने की जरूरत है।
महानिदेशक सुनीता नारायण ने बताया कि 2017-2022 के बीच दिल्ली सरकार ने 6,856 करोड़ रुपये खर्च किए, फिर भी यमुना प्रदूषित है।दिल्ली का मात्र 22 किमी यमुना खंड (कुल बेसिन का 2%) नदी के 80% से अधिक प्रदूषण का स्रोत है।
नौ महीने सूखी रहती है, बहता है सिर्फ 22 नालियों का सीवेज। 37 एसटीपी 84% सीवेज शुद्ध करते हैं, पर 23 मानकों पर खरे नहीं उतरते। डीपीसीसी के अनुसार, 80% गंदे पानी का उपचार होता है, लेकिन उपचारित पानी नालों में छोड़ने से मिलावट हो जाती है।
प्रमुख समस्याएं:
अपशिष्ट जल के सटीक आंकड़े नहीं।
अनधिकृत कॉलोनियों और टैंकरों से बिना उपचारित मलजल नदी में।
औद्योगिक क्षेत्रों के CETP की गुणवत्ता संदिग्ध।
CSE की पांच-सूत्री योजना:
- टैंकर मलजल प्रबंधन: सभी टैंकर पंजीकृत हों, निगरानी हो, मलजल STP तक पहुंचे।
- उपचारित पानी का पुनरुपयोग: वर्तमान में सिर्फ 10-14% पानी दोबारा इस्तेमाल होता है; हर STP को उपयोग योजना बनानी चाहिए।
- उपचारित पानी नालों में नहीं: इसे अलग छोड़ा जाए, मिलावट रोकी जाए।
- STP उन्नयन पुनरुपयोग आधारित: नदी में छोड़ने के बजाय उपयोग के मानक तय हों।
- प्राथमिकता बड़े नालों पर: नजफगढ़ और शाहदरा नाले 84% प्रदूषण डालते हैं; इंटरसेप्टर योजना असफल, नए फोकस की जरूरत।
सुनीता नारायण ने कहा, “मरी यमुना दिल्ली की शर्म है और नीचे के शहरों पर साफ पानी का बोझ बढ़ाती है।” CSE का जोर: महंगे सीवर नेटवर्क की बजाय टैंकर-आधारित स्लज प्रबंधन तेज और किफायती है। नई सोच से यमुना फिर जीवित हो सकती है।
