भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 का दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से बेहतर रहा, जिसमें देशभर में औसतन 108% बारिश दर्ज की गई। यह दीर्घकालिक औसत (एलपीए) से अधिक है और इसे “सामान्य से अधिक” श्रेणी में रखा गया है।
हालांकि, पूर्वोत्तर भारत और बिहार में कम बारिश ने क्षेत्रीय असमानता को उजागर किया। इस मानसून ने खेती और जल संसाधनों के लिए सकारात्मक योगदान दिया, लेकिन भारी बारिश से कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएं भी देखने को मिलीं।
देशभर में बारिश का हाल
2025 के मानसून सीजन (जून-सितंबर) में देशभर में औसतन 937.2 मिमी बारिश हुई, जो 2001 के बाद पांचवां सबसे अधिक और 1901 के बाद 38वां सबसे बड़ा आंकड़ा है।
क्षेत्रवार आंकड़ों में उत्तर-पश्चिम भारत में 127%, मध्य भारत में 115%, और दक्षिणी प्रायद्वीप में 110% बारिश दर्ज की गई। वहीं, पूर्वोत्तर भारत में केवल 80% बारिश हुई, जो 1901 के बाद दूसरा सबसे कम आंकड़ा है।
मानसून का आगमन और वापसी
मानसून का आगमन सामान्य से पहले हुआ। अंडमान-निकोबार में 13 मई को मानसून पहुंचा, जो सामान्य तिथि (19 मई) से छह दिन पहले था। केरल में यह 24 मई को आया, जो सामान्य तिथि (1 जून) से आठ दिन पहले था।
29 जून तक मानसून ने पूरे देश को कवर कर लिया, जो सामान्य तिथि (8 जुलाई) से नौ दिन पहले था। मानसून की वापसी भी जल्दी शुरू हुई, और 14 सितंबर को पश्चिमी राजस्थान से इसकी वापसी दर्ज की गई।
कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव
मानसून कोर जोन (बारिश पर निर्भर खेती वाले क्षेत्र) में 122% बारिश हुई, जिससे खरीफ फसलों (धान, मक्का, सोयाबीन, कपास) की पैदावार में सुधार की उम्मीद है। जलाशयों का स्तर बढ़ने से रबी फसलों के लिए सिंचाई की स्थिति भी बेहतर हुई।
मौसम विभाग का पूर्वानुमान
आईएमडी का मानसून पूर्वानुमान सटीक रहा। केरल में आगमन और जून-सितंबर के लिए 105-106% एलपीए का अनुमान था, जबकि वास्तविक बारिश 108% रही। जुलाई में थोड़ी चूक को छोड़कर, बाकी महीनों का अनुमान लगभग सटीक रहा।
