25 सितंबर को विश्व फेफड़ा दिवस (वर्ल्ड लंग डे) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सांस की बीमारियों को कम करना है।
अंतर्राष्ट्रीय श्वसन सोसायटी मंच (एफआईआरएस) द्वारा शुरू किया गया यह दिन लोगों को फेफड़ों की देखभाल के महत्व को समझाने और गलत धारणाओं को दूर करने का अवसर देता है।
भारत में फेफड़ों के कैंसर, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा और टीबी जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन जागरूकता की कमी और समय पर जांच न होने से इलाज में देरी होती है।
फेफड़ों से जुड़ी गलतफहमियां और उनके खतरे
लोगों में फेफड़ों की बीमारियों को लेकर कई मिथक प्रचलित हैं, जो समय पर इलाज में बाधा बनते हैं। आम धारणा है कि केवल धूम्रपान करने वालों को ही फेफड़ों की बीमारी होती है, लेकिन यह सच नहीं है।
प्रदूषण, धूल, धुआं, संक्रमण और आनुवांशिक कारण भी फेफड़ों की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं। एक और मिथक है कि बुढ़ापे में सांस फूलना सामान्य है, जबकि यह गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकता है।
यह भी गलत है कि व्यायाम अकेले फेफड़ों को प्रदूषण या धूम्रपान के नुकसान से बचा सकता है। ये गलत धारणाएं खासकर भारत जैसे देशों में फेफड़ों की बीमारियों को और जटिल बनाती हैं।
भारत में फेफड़ों की बीमारियों का बढ़ता संकट
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 81,748 नए फेफड़ों के कैंसर के मामले दर्ज हुए, जो दुनिया में चौथे सबसे अधिक थे। इसके अलावा, सीओपीडी, अस्थमा और टीबी जैसी बीमारियां भी भारत में आम हैं।
कम जागरूकता और जांच की कमी के कारण इनका पता अक्सर देर से चलता है, जब बीमारी गंभीर हो चुकी होती है।
सीओपीडी: खामोश हत्यारा
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें सांस की नलियां संकरी हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 2021 में दुनिया भर में 35 लाख लोगों की मौत सीओपीडी के कारण हुई, जिनमें 90% से अधिक मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में हुईं। यह बीमारी वैश्विक स्तर पर बीमारी के बोझ का आठवां सबसे बड़ा कारण है।
सीओपीडी के प्रमुख कारण:
- धूम्रपान: विकसित देशों में 70% और विकासशील देशों में 30-40% मामले धूम्रपान से जुड़े हैं।
- घरेलू वायु प्रदूषण: लकड़ी, कोयला या गोबर से खाना पकाने का धुआं।
- धूल और रासायनिक जोखिम: फैक्ट्रियों में काम करने वालों को धूल, धुएं या रसायनों का खतरा।
- बचपन में सांस के रोग: बार-बार होने वाले फेफड़ों के संक्रमण या कमजोर शारीरिक विकास।
- आनुवांशिक कारण: जैसे अल्फा-1 ऐन्टीट्रिप्सिन की कमी।
