वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की 2024 की लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 सालों में निगरानी वाले वन्यजीवों की आबादी में 73% की गिरावट दर्ज की गई है। इन वन्यजीवों की प्राकृतिक आवासों को नुकसान, जलवायु परिवर्तन, और प्रदूषण इसके मुख्य कारण हैं। यह रिपोर्ट हमें बताती है कि वन्यजीवों की संख्या में इतनी बड़ी गिरावट हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कितना बड़ा खतरा है।
भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है। 1992 से 2022 के बीच इन गिद्धों की आबादी में तीव्र गिरावट दर्ज की गई है:
- सफेद पूंछ वाले गिद्धों की संख्या में 67% कमी आई है।
- भारतीय गिद्धों की आबादी में 48% की गिरावट हुई है।
- पतली चोंच वाले गिद्धों की संख्या में सबसे ज्यादा 89% की गिरावट दर्ज की गई है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के महासचिव और सीईओ ने कहा, “यह रिपोर्ट प्रकृति, जलवायु परिवर्तन और मानव जीवन के आपसी संबंधों पर प्रकाश डालती है। आने वाले पांच साल धरती के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे।”
मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे अधिक गिरावट
रिपोर्ट में पाया गया है कि सबसे तेज गिरावट मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्रों में दर्ज की गई है, जिसमें 85% की कमी देखी गई है। इसके बाद स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में 69% और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में 56% की गिरावट हुई है।
वन्यजीवों की आबादी में इस गिरावट के मुख्य कारणों में आवास की हानि (खासकर खाद्य उत्पादन से जुड़ी गतिविधियों के कारण), अतिशोषण, आक्रामक प्रजातियों का बढ़ना, और बीमारियाँ शामिल हैं।
कुछ वन्यजीव आबादी में स्थिरता
हालांकि, भारत में कुछ वन्यजीव आबादी स्थिर हो रही है और सुधार के संकेत दिखा रही है। इसका श्रेय सरकारी पहलों, प्रभावी आवास प्रबंधन, वैज्ञानिक निगरानी, सामुदायिक भागीदारी और सार्वजनिक समर्थन को जाता है।
भारत आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा बाघों की आबादी वाला देश है। 2022 में 3,682 बाघ दर्ज किए गए, जो 2018 में 2,967 बाघों से बढ़कर हैं। इसके अलावा, पहली बार हिम तेंदुओं की गणना भी की गई, जिसमें करीब 718 हिम तेंदुओं की पुष्टि की गई, जो उनके आवास क्षेत्र के 70% हिस्से में फैले हुए हैं।
पर्यावरण का नुकसान और जलवायु परिवर्तन का खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण का नुकसान और जलवायु परिवर्तन मिलकर पारिस्थितिक तंत्र में गंभीर समस्याएं पैदा कर रहे हैं। अगर यह दहलीज पार हो जाती है, तो पर्यावरण में होने वाले बदलाव स्थायी हो सकते हैं और इन्हें पलटना असंभव हो जाएगा।
उदाहरण के लिए, चेन्नई में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण यहां की आर्द्रभूमियों में 85% की कमी आई है। आर्द्रभूमियां जल संग्रहण, भूजल पुनर्भरण और बाढ़ नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में सहायक होती हैं। इनके नष्ट होने से न केवल पर्यावरणीय सेवाओं का नुकसान हुआ है, बल्कि मानव जीवन पर भी इसका गंभीर असर पड़ा है।
निष्कर्ष: संरक्षण की दिशा में जरूरी कदम
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अगर हमने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो वन्यजीवों की घटती आबादी और पारिस्थितिक तंत्र का नुकसान भविष्य में और भी अधिक संकट पैदा करेगा। वन्यजीवों और पर्यावरण का संरक्षण न केवल प्रकृति के लिए, बल्कि हमारे अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। अब समय आ गया है कि सरकारें, संगठन और जनता मिलकर इस संकट का समाधान निकालें और धरती के भविष्य को सुरक्षित करें।