environmentalstory

Home » यमुना की सफाई पर 6,856 करोड़ खर्च, फिर भी नदी ‘प्रदूषित’: सीएसई की रिपोर्ट ने खोली पोल

यमुना की सफाई पर 6,856 करोड़ खर्च, फिर भी नदी ‘प्रदूषित’: सीएसई की रिपोर्ट ने खोली पोल

by kishanchaubey
0 comment
cleaning Yamuna

दिल्ली सरकार ने 2017 से 2022 के बीच यमुना नदी की सफाई के लिए 6,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए, लेकिन नदी की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ताजा ब्रीफिंग पेपर, “यमुना: दी एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर,” में यमुना के प्रदूषण के कारणों और समाधानों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में यमुना नदी का पानी नौ महीने तक लगभग गायब रहता है, और नदी में केवल 22 नालों से निकलने वाला मल और कचरा ही बहता है।

यमुना क्यों है प्रदूषित?

सीएसई की रिपोर्ट में यमुना के प्रदूषण के लिए कई प्रमुख कारणों की पहचान की गई है:

  • आंकड़ों का अभाव: दिल्ली में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट जल की मात्रा का कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है। अनौपचारिक जल स्रोतों (भूजल, टैंकर) और जनगणना के अभाव के कारण योजना बनाना मुश्किल है।
  • टैंकरों से प्रदूषण: शहर का एक बड़ा हिस्सा मल-मूत्र की सफाई के लिए टैंकरों पर निर्भर है, जो कचरे को सीधे नदी या नालों में बहा देते हैं।
  • उपचारित और अनुपचारित सीवेज का मिश्रण: दिल्ली के 22 नाले उपचारित और अनुपचारित सीवेज को एक साथ ले जाते हैं, जिससे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) का प्रयास बेकार हो जाता है।
  • औद्योगिक प्रदूषण: 28 औद्योगिक क्षेत्रों में से 17 के अपशिष्ट का उपचार होता है, लेकिन उपचार की गुणवत्ता खराब है, और उपचारित अपशिष्ट का निपटान अस्पष्ट है।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “यमुना की गंदगी कोई नई समस्या नहीं है। इतने खर्च और योजनाओं के बावजूद नदी ‘मृत’ है। यह न केवल दिल्ली के लिए शर्मनाक है, बल्कि डाउनस्ट्रीम शहरों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने का बोझ भी बढ़ाता है। केवल पैसा पर्याप्त नहीं, हमें एक नई सोच और रणनीति चाहिए।”

banner

अब तक क्या हुआ?

दिल्ली सरकार, केंद्र, और अदालतें यमुना की सफाई के लिए प्रयासरत हैं। कुछ प्रमुख कदम:

  • सीवेज उपचार क्षमता: दिल्ली के 37 एसटीपी 84% सीवेज का उपचार कर सकते हैं, और 80% का उपचार हो रहा है। जून 2025 तक 100% उपचार का दावा है।
  • कड़े मानक: एसटीपी के लिए 10 मिलीग्राम/लीटर का नया मानक लागू है, लेकिन 23 एसटीपी इसे पूरा नहीं करते, जिसके लिए नवीनीकरण की जरूरत है।
  • इंटरसेप्टर सीवर परियोजना: 1,000 मिलियन लीटर सीवेज को रोककर उपचार के लिए भेजने का लक्ष्य है।
  • अनधिकृत कॉलोनियों: 1,000 से अधिक सीवर लाइनें बिछाई गई हैं।
  • औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण: 17 औद्योगिक क्षेत्रों के अपशिष्ट का उपचार हो रहा है, लेकिन गुणवत्ता चिंताजनक है।

फिर भी क्यों नहीं सुधर रही स्थिति?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़े बताते हैं कि यमुना पल्ला पहुंचने के कुछ किलोमीटर बाद ही ‘मृत’ हो जाती है। आईएसबीटी पर नदी का बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) शून्य है। इतने निवेश और योजनाओं के बावजूद नदी की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ। नजफगढ़ और शाहदरा नाले, जो 84% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, पर इंटरसेप्टर ड्रेन योजना विफल रही है।

सीएसई का पांच-सूत्री एजेंडा

रिपोर्ट में यमुना को बचाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:

  1. मल-मूत्र प्रबंधन: बिना सीवर वाले इलाकों में टैंकरों से मल इकट्ठा कर उपचार करें। टैंकरों का पंजीकरण और निगरानी जरूरी है।
  2. उपचारित जल का अलग प्रबंधन: उपचारित पानी को अनुपचारित सीवेज वाली नालियों में न मिलने दें। प्रत्येक एसटीपी को उपचारित जल के निपटान की योजना बनानी होगी।
  3. उपचारित जल का पुन: उपयोग: वर्तमान में केवल 10-14% उपचारित जल का पुन: उपयोग होता है। इसे बढ़ाना होगा।
  4. मानकों का पुनर्मूल्यांकन: कड़े मानकों को जल पुन: उपयोग के हिसाब से तैयार करें, ताकि एसटीपी नवीनीकरण पर अतिरिक्त खर्च कम हो।
  5. नजफगढ़ और शाहदरा नालों पर फोकस: इन नालों के लिए नई रणनीति बनाएं, क्योंकि ये नदी के प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं।

You may also like