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2024 हज यात्रा: जानलेवा गर्मी और नमी ने ली 1300 से अधिक तीर्थयात्रियों की जान

by kishanchaubey
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2024 Hajj Pilgrimage: हर साल लाखों मुस्लिम तीर्थयात्री हज करने मक्का जाते हैं, लेकिन 2024 की हज यात्रा में जानलेवा गर्मी और नमी ने 1300 से अधिक लोगों की जान ले ली। यह यात्रा जून के मध्य में, जब सऊदी अरब में गर्मियों का चरम होता है, आयोजित हुई।

हमारे नए शोध से पता चला है कि इस साल हज के दौरान छह दिनों में 43 घंटे तक गर्मी और नमी की वो सीमा पार हुई, जो मानव शरीर सहन कर सकता है। यह स्थिति इतनी गंभीर थी कि हमारे शरीर को खुद को ठंडा करने का भी समय नहीं मिला।

क्या हुआ मक्का में?

जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कई जगहों पर नमी भी बढ़ रही है। सऊदी अरब जैसे शुष्क क्षेत्रों में भी यह समस्या उभर रही है।

इस साल हज 14 जून से शुरू हुई। अगले छह दिनों तक तापमान 51°C तक पहुंच गया। साथ ही, “वेट-बलब तापमान” (गर्मी और नमी का संयुक्त प्रभाव) 29.5°C तक बढ़ गया।

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सामान्य तौर पर, जून में सऊदी अरब में औसत सापेक्ष आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) लगभग 25% होती है। लेकिन इस साल हज के दौरान यह 33% तक रही और चरम समय में 75% तक पहुंच गई।

हज के दौरान तीर्थयात्रियों को हर दिन 6 से 21 किलोमीटर तक पैदल चलना होता है। अधिकांश तीर्थयात्री बुजुर्ग होते हैं और उनकी सेहत उतनी अच्छी नहीं होती, जिससे वे गर्मी के तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

जानलेवा गर्मी और नमी के कारण मौतें क्यों हुईं?

  • ऊंचा तापमान और नमी:
    वेट-बलब तापमान ने बुजुर्गों की सहनशीलता सीमा को हर दिन पार किया। 18 जून को स्थिति इतनी गंभीर थी कि यह युवा और स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी खतरनाक बन गई।
  • ठंडी जगहों की कमी:
    सऊदी सरकार ने एयर-कंडीशन शेल्टर और अन्य ठंडक सुविधाएं लगाई थीं, लेकिन ये केवल आधिकारिक परमिट वाले तीर्थयात्रियों के लिए उपलब्ध थीं। बिना परमिट वाले अधिकतर तीर्थयात्री इन सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सके।

भविष्य में क्या होगा?

आने वाले 25 वर्षों में हज का समय फिर से गर्मियों के चरम समय (अगस्त-सितंबर) में आ जाएगा। अगर वैश्विक तापमान में 2°C की वृद्धि होती है, तो हज के दौरान हीटस्ट्रोक का खतरा दस गुना बढ़ जाएगा।

गर्मी और नमी की सीमा क्या है?

2010 में शोधकर्ताओं ने पहली बार “जीवन की सीमा” (सर्वाइवल लिमिट) के रूप में वेट-बलब तापमान 35°C का प्रस्ताव रखा।
लेकिन नए शोधों से पता चला है कि यह सीमा इससे कम है।

  • युवा लोगों के लिए सहनशीलता सीमा 45°C (25% नमी पर) और 34°C (80% नमी पर) है।
  • बुजुर्गों के लिए यह सीमा और भी कम है: 32.5°C (80% नमी पर)।

जब गर्मी और नमी इस सीमा को पार कर जाती है, तो हमारा शरीर ठंडा नहीं हो पाता। इससे शरीर का तापमान बढ़ता है, हीटस्ट्रोक होता है और कुछ घंटों के भीतर मौत हो सकती है।

गर्मी और नमी का वैश्विक खतरा

गर्मी एक “चुपचाप मारने वाला” खतरा है। यह बाढ़, सूखा या तूफान की तरह दिखाई नहीं देता, लेकिन यह सबसे अधिक जानलेवा जलवायु संकट बन चुका है।

  • नमी समुद्रों और अन्य बड़े जल स्रोतों से वाष्पीकरण के कारण बढ़ती है।
  • जैसे-जैसे महासागर गर्म हो रहे हैं, वे अधिक नमी छोड़ रहे हैं।
  • अरब प्रायद्वीप जैसे क्षेत्र, जो गर्म समुद्रों से घिरे हैं, इस खतरे के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

नमी भले ही समुद्रों से शुरू हो, लेकिन यह “वायुमंडलीय नदियों” के जरिए दूरदराज के इलाकों तक भी पहुंच सकती है। यही कारण है कि उत्तर भारत जैसे स्थलीय क्षेत्रों में भी यह खतरा बढ़ रहा है।

समस्याओं का समाधान और सीमाएं

तकनीकी उपाय जैसे एयर-कंडीशनिंग मददगार हो सकते हैं, लेकिन ये सभी के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

  • ब्लैकआउट का खतरा:
    हीटवेव के दौरान अधिक बिजली की खपत से बिजली गुल होने का खतरा बढ़ जाता है।

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाना अनिवार्य है। अगर जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता खत्म नहीं होती, तो हर साल दुनिया के प्रमुख देशों में जानलेवा नमी और गर्मी कई बार देखने को मिलेगी।

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