हर साल 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है, जो हमें गैंडों के संरक्षण और उनके पारिस्थितिक महत्व की याद दिलाता है। भारत, विशेषकर असम, ने ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडे (Greater One-Horned Rhino) के संरक्षण में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है।
1960 के दशक में जहां इनकी संख्या मात्र 600 थी, वहीं 2024 तक यह बढ़कर 4,000 से अधिक हो चुकी है। असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में विश्व के लगभग 70% ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडे निवास करते हैं, जो इसे वैश्विक संरक्षण का प्रतीक बनाता है।
भारत में गैंडों की सफलता की कहानी
असम ने गैंडों के संरक्षण में अभूतपूर्व प्रगति की है। 1980 के दशक से अब तक इनकी आबादी में 170% की वृद्धि दर्ज की गई है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है, न केवल गैंडों का प्रमुख निवास है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र भी बन चुका है।
असम में विश्व की लगभग 80% ग्रेटर वन-हॉर्न्ड गैंडों की आबादी बसती है।संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार ने इस सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ओरांग राष्ट्रीय उद्यान का 200 वर्ग किमी तक विस्तार और लाओखोवा–बुराछापोरी में 12.82 वर्ग किमी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करना उल्लेखनीय कदम हैं। इसके अलावा, सिकनाझर राष्ट्रीय उद्यान और पोबा वन्यजीव अभयारण्य जैसे नए संरक्षित क्षेत्रों का गठन भी किया गया है।
गैंडों का पारिस्थितिक महत्व
गैंडे केवल विशाल और प्राचीन प्रजाति ही नहीं, बल्कि एक की-स्टोन प्रजाति भी हैं। ये घास चरकर खुले मैदान बनाते हैं, जिससे अन्य जानवरों को भोजन और आवास मिलता है।
उनके कीचड़ में लोटने से छोटे जलाशय बनते हैं, जो पक्षियों, मछलियों और अन्य जीवों के लिए जीवनदायी हैं। गैंडों के आवास जैव विविधता को संरक्षित करते हैं और स्वच्छ हवा, पानी तथा स्थानीय समुदायों की आजीविका को समर्थन देते हैं।
विश्व गैंडा दिवस का संदेश
विश्व गैंडा दिवस हमें याद दिलाता है कि संरक्षण एक सतत प्रक्रिया है। भारत ने दिखाया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और सामूहिक प्रयासों से किसी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।
हालांकि, वैश्विक स्तर पर गैंडों का शिकार और तस्करी अभी भी एक बड़ी चुनौती है। गैंडों का संरक्षण केवल एक प्रजाति की रक्षा नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानवता के भविष्य की सुरक्षा है।
