Dragon Fruit Oraganic Farming: ड्रैगन फ्रूट, जिसे ‘पितया’ के नाम से भी जाना जाता है, एक विदेशी फल है जो भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इस फल की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, क्योंकि इसमें निवेश की तुलना में अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
यह पौधा कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देता है और इसके बाजार में मांग भी लगातार बढ़ रही है। आइए जानते हैं ड्रैगन फ्रूट की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।
ड्रैगन फ्रूट की किस्में
ड्रैगन फ्रूट की तीन प्रमुख किस्में होती हैं:
सफेद गूदा (हाइलोकेरेस अंडैटस): इस किस्म का बाहरी हिस्सा गुलाबी और गूदे का रंग सफेद होता है। इसका स्वाद हल्का मीठा होता है।
लाल गूदा (हाइलोकेरेस कोस्टारिसेंसिस): इस किस्म में बाहर का रंग गुलाबी या लाल होता है, और गूदे का रंग भी लाल होता है। इसका स्वाद अन्य किस्मों की तुलना में मीठा होता है।
पीला ड्रैगन फ्रूट (सेलेनिसियस मेगालांथस): इसका बाहरी हिस्सा पीला होता है और अंदर सफेद गूदा होता है। इसका स्वाद भी बहुत मीठा होता है और इसे काफी पसंद किया जाता है।
खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। यह पौधा 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह से बढ़ता है।
इसे कम पानी की आवश्यकता होती है और यह सूखा सहन कर सकता है। हालांकि, अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी इस पौधे के लिए आदर्श होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
खेती की विधि
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए सबसे पहले कटिंग या बीज से पौधे तैयार किए जाते हैं। कटिंग से पौधे जल्दी तैयार होते हैं, इसलिए इसे सबसे ज्यादा अपनाया जाता है।
एक एकड़ में करीब 500 से 600 पौधे लगाए जा सकते हैं। पौधों के बीच की दूरी 2 मीटर और कतारों के बीच 3 मीटर होनी चाहिए।
पौधे को सपोर्ट देने के लिए लकड़ी या सीमेंट के खंभों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह बेल जैसा पौधा है जो सहारे के बिना ठीक से नहीं बढ़ता।
सिंचाई और खाद प्रबंधन
ड्रैगन फ्रूट की खेती में नियमित सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शुरुआती दिनों में हल्की सिंचाई आवश्यक होती है।
जैविक खाद का उपयोग इसके उत्पादन में वृद्धि करता है। गोबर की खाद और कम्पोस्ट का उपयोग पौधों के लिए लाभकारी होता है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश युक्त उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
कीट और रोग प्रबंधन
ड्रैगन फ्रूट की खेती में कुछ सामान्य कीट और रोग देखे जा सकते हैं, जैसे:
सफेद मक्खी: यह मक्खी पत्तियों का रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुंचाती है। जैविक कीटनाशकों का उपयोग इस कीट को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
जड़ सड़न: यह समस्या अधिक पानी के कारण होती है, इसलिए जल निकासी का ध्यान रखना आवश्यक है।
कटाई और उत्पादन
ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगभग 12-18 महीने में फल देना शुरू कर देते हैं। एक पौधा 20-25 साल तक फल दे सकता है। एक एकड़ भूमि से औसतन 8-10 टन तक उत्पादन हो सकता है।
बाजार और आय
ड्रैगन फ्रूट की बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर इसके औषधीय गुणों के कारण। यह पाचन में सहायक, एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर और डायबिटीज़ नियंत्रण में भी उपयोगी होता है। स्थानीय मंडियों के अलावा इसे विदेशों में भी निर्यात किया जा सकता है। एक एकड़ से किसान औसतन 3 से 5 लाख रुपये सालाना मुनाफा कमा सकते हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती के फायदे
कम पानी और देखभाल में भी अच्छा उत्पादन।
लंबे समय तक उत्पादन देने वाली फसल।
बाजार में उच्च मांग और उचित मूल्य।
औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग बढ़ रहा है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी सौदा साबित हो सकती है। सही तकनीक, उचित देखभाल और सही समय पर कटाई से इस फसल से बेहतर कमाई कर सकते है। जैविक खेती और सही बाजार रणनीति के साथ, इस फल की खेती आने वाले समय में और भी लाभदायक हो सकती है।