हर साल 4 जुलाई को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय कटहल दिवस इस साधारण लेकिन असाधारण फल की अपार संभावनाओं को रेखांकित करता है। भारत में कटहल न केवल पाक परंपराओं और ग्रामीण परिदृश्य का हिस्सा है, बल्कि यह पोषण, आय और उद्यमिता का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी बन गया है।
तमिलनाडु और केरल का राज्य फल होने के साथ-साथ बांग्लादेश और श्रीलंका का राष्ट्रीय फल, कटहल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी गहरी जड़ें रखता है।
कटहल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
कटहल, जिसे ‘जक’, ‘कथल’ या ‘चक्का’ के नाम से भी जाना जाता है, हजारों सालों से मानव आहार का हिस्सा रहा है। माना जाता है कि यह भारत के पश्चिमी घाट का मूल निवासी है। ‘जैकफ्रूट’ शब्द पुर्तगाली शब्द ‘जैका’ और मलयालम के ‘चक्का’ से लिया गया है।
1563 में पुर्तगाली प्रकृतिवादी गार्सिया दा ओर्टा ने इसे ‘जैकफ्रूट’ नाम दिया। उपनिवेशवाद के दौरान यह फल विश्व के कई हिस्सों में फैल गया और आज यह उन देशों में उगाया जाता है जो कभी यूरोपीय साम्राज्यों के उपनिवेश थे।
पोषण और बहुमुखी उपयोग
कटहल विटामिन ए, सी, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन जैसे खनिजों से भरपूर है। इसकी बाहरी नुकीली त्वचा और तीखी गंध के बावजूद, इसका स्वाद मधुर होता है।
पके कटहल का उपयोग जैम, अचार, आइसक्रीम और मिठाइयों में किया जाता है, जबकि कच्चा कटहल पौधे-आधारित आहार में मांस के विकल्प के रूप में लोकप्रिय है। इसकी बनावट पकने पर मांस जैसी हो जाती है, जिसके कारण ग्लोबल नॉर्थ में इसे ‘वेजिटेरियन मीट’ के रूप में अपनाया जा रहा है।
आर्थिक और पर्यावरणीय योगदान
भारत 14 लाख टन कटहल उत्पादन के साथ विश्व में अग्रणी है, जबकि बांग्लादेश 926 टन के साथ दूसरे स्थान पर है। 2023-24 में भारत ने 2.666 करोड़ किलोग्राम कटहल का निर्यात किया, जिसका मूल्य 4.014 करोड़ रुपये रहा।
कटहल के बीजों को भूनकर या उबालकर खाया जाता है, और इसके पेड़ की लकड़ी, चारा और प्राकृतिक रंग उपयोग में लाए जाते हैं। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, कटहल के बाग कार्बन अवशोषण, मिट्टी संरक्षण और कटाव नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चुनौतियां और अवसर
हालांकि कटहल की मांग बढ़ रही है, लेकिन फसल के चरम मौसम में जागरूकता, प्रसंस्करण सुविधाओं और बाजार से जुड़ाव की कमी के कारण उपज का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है।
कटहल को पोषण और आय का स्रोत बनाने के लिए प्रसंस्करण इकाइयों, बाजार पहुंच और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। 2016 में स्थापित जैकफ्रूट डे का उद्देश्य इस फल की बहुमुखी प्रतिभा को बढ़ावा देना है।