environmentalstory

Home » क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकटों से जुड़ी चिंता जो मानसिक स्वास्थ्य पर डालती है असर

क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकटों से जुड़ी चिंता जो मानसिक स्वास्थ्य पर डालती है असर

by environmentalstory
0 comment

What is Climate or Eco-anxiety: क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी (climate anxiety या eco-anxiety) एक प्रकार की चिंता है जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं से संबंधित होती है।

You Might Be Interested In

यह चिंता लोगों के भीतर तब उत्पन्न होती है जब वे ग्लोबल वॉर्मिंग, प्राकृतिक आपदाओं, जैव विविधता के नुकसान, प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति जैसी समस्याओं के बारे में सोचते हैं। इस चिंता से लोग अक्सर असहाय और निराश महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे इन समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं।

क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी के लक्षण

इको-एंग्जाइटी के कई मानसिक और शारीरिक लक्षण होते हैं, जो कि अन्य प्रकार की एंग्जाइटी के समान होते हैं, जैसे:

लगातार चिंता और भय

banner

नींद न आना (अनिद्रा)

मानसिक थकावट और तनाव

निराशा या अवसाद की भावना

अनिश्चितता का अनुभव करना

असहाय महसूस करना

क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों से जुड़ी चिंताएँ न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, बल्कि यह सामूहिक रूप से समाज और पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: इको-एंग्जाइटी से पीड़ित लोग अक्सर उदास, निराश या तनावग्रस्त हो जाते हैं। यह स्थिति दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है जैसे कि डिप्रेशन, क्रॉनिक स्ट्रेस या एंग्जाइटी डिसऑर्डर।

सामाजिक संबंधों पर असर: लगातार चिंता में डूबे रहने वाले लोग सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से बचने लगते हैं। इसके चलते उनका सामाजिक जीवन प्रभावित होता है, जो उनके रिश्तों और पेशेवर जीवन पर नकारात्मक असर डालता है।

पर्यावरण पर प्रभाव: इको-एंग्जाइटी लोगों को ‘eco-paralysis’ की स्थिति में धकेल सकती है। यह वह स्थिति है जब व्यक्ति पर्यावरणीय संकटों को देखकर पूरी तरह से हताश हो जाता है और किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने से बचता है। अगर लोग इस प्रकार की मानसिकता में चले जाते हैं, तो इससे पर्यावरण की रक्षा के लिए होने वाले सकारात्मक प्रयास कम हो सकते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।

इको-एंग्जाइटी से निपटने के उपाय

जानकारी प्राप्त करें, लेकिन सीमित मात्रा में: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में जागरूक रहना महत्वपूर्ण है, लेकिन अत्यधिक जानकारी लेने से तनाव बढ़ सकता है। इससे बचने के लिए नियमित रूप से समाचार या सोशल मीडिया पर जानकारी लेने का समय सीमित रखें।

छोटे-छोटे कदम उठाएं: अपने जीवन में छोटे और सकारात्मक बदलाव करने से आपको नियंत्रण का अनुभव होगा। जैसे कि प्लास्टिक का कम उपयोग, पेड़ों को लगाना, ऊर्जा की बचत करना, और कचरे का सही निपटान करना। यह आपको मानसिक रूप से बेहतर महसूस कराएगा और पर्यावरण में भी योगदान देगा।

सहयोगी नेटवर्क बनाएं: उन लोगों से जुड़ें जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। सामूहिक प्रयास न केवल आपकी चिंता को कम करेंगे, बल्कि आपको दूसरों के साथ मिलकर काम करने का भी अवसर देंगे।

प्रोफेशनल मदद लें: यदि आपकी इको-एंग्जाइटी गंभीर हो रही है और आपके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रही है, तो एक मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद लेना महत्वपूर्ण हो सकता है।

तेजी से बढ़ रहा है क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी

क्लाइमेट या इको-एंग्जाइटी एक वास्तविक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो हमारे समाज में तेजी से बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकटों से जुड़े इस डर और चिंता को कम करने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है।

साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम इको-एंग्जाइटी से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से सकारात्मक समाधान खोजें ताकि हम न केवल अपने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा कर सकें, बल्कि प्रकृति को भी संरक्षित कर सकें।

You may also like